सिद्धार्थनगर : बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में खेल गतिविधियां चार वर्ष से ठप र्है। परिषदीय स्कूलों के बच्चों की जनपदीय रैली न होने से उनमें सचिन तेंदुलकर व सानिया मिर्जा बनने की प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं।
सरकारें ओल¨पक खेलों में रजत और स्वर्ण पदक विजेताओं को सम्मानित करने के लिए लाखों रूपये पानी में बहाती हैं, पर ओल¨पक खेलों की नर्सरी माने जाने वाले परिषदीय विद्यालयों में बाल क्रीड़ा बजट का प्राविधान नहीं किया जा रहा है। लिहाजा ग्रामीण परिवेश के बच्चे असीम प्रतिभा होने के बावजूद प्रदर्शन करने में अक्षम साबित हो रहे हैं।
प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में बाल क्रीड़ा प्रतियोगिताओं के आयोजन निमित्त बजट का प्राविधान न किये जाने से जिले में चार वर्ष से परिषदीय विद्यालयों के बच्चे खेल के माध्यम से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने से बंचित हैं। जिससे उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित हो रहा हे। निश्शुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को वर्ष 2011 में लागू करने के उपरांत बच्चों को पूर्णतया निश्शुल्क शिक्षा देने का प्राविधान किया तो गया, पर उनके सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने व खेलों के आयोजन के लिए कोई ध्यान नहीं दिया गया। यही कारण है कि प्रति वर्ष ब्लाक से लेकर तहसील, जिला, मंडल व प्रदेश स्तर तक के खेल जैसे भव्य आयोजन धनाभाव के कारण गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं।
बता दें चार वर्ष पूर्व प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों से कक्षा 1 व 2 से 10 पैसा, कक्षा 3 से 5 तक के बच्चों से 20 पैसा, पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों से 2 रुपया क्रीड़ा शुल्क लिया जाता था। इस शुल्क के माध्यम से ही परिषदीय विद्यालयों के बच्चे ब्लाक से लेकर प्रदेश स्तर तक होने वाले बाल क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में शामिल होकर बेहतर प्रदर्शन के माध्यम से क्षेत्र व समाज को गौरवान्वित करने का काम करते थे। मौजूदा परिवेश में निश्शुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद बच्चों को पूर्णतया शुल्क मुक्त कर दिया गया, पर प्रति वर्ष होने वाला ब्लाक, तहसील व जनपदीय खेलकूद प्रतियोगिता के लिए बजट की व्यवस्था न होना अविवेक निर्णय के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र की प्रतिभाओं का हनन है। इस मुद्दे पर ध्यान आकृष्ट कराने वाले उत्तर प्रदेश जूनियर हाईस्कूल (पूर्व माध्यमिक) शिक्षक संघ बस्ती मंडल के उपाध्यक्ष कलीमुल्लाह ने क्रीड़ा प्रतियोगिता का न होने को दुर्भाग्यपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि इस दिशा में प्रदेश के मुख्यमंत्री, बेसिक शिक्षा मंत्री को सकारात्मक पहल करना चाहिए, साथ ही विभागीय अफसरों को भी समय-समय पर उच्चाधिकारियों को सुझाव देने की पहल करनी चाहिए। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अजय कुमार ¨सह का कहना है कि क्रीड़ा शुल्क का कोई बजट न होने के कारण खेल प्रतियोगिताएं नहीं हो पा रही है। आरटीई लागू होने के बाद किसी बच्चे से क्रीड़ा शुल्क भी नहीं लिया जा सकता है। शासन अथवा विभागीय निर्देशों पर ही खेल गतिविधियां फिर से शुरू हो सकती हैं।
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परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए पढ़ाई के साथ खेलकूद भी जरूरी है। आरटीई लागू होने के बाद शुल्क प्रतिबंधित होने से धनाभाव में सरकारी स्कूलों में खेल लुप्त होता जा रहा है। पहले स्कूल से लेकर प्रदेश स्तर पर क्रीड़ा प्रतियोगिता आयोजित होता था। सरकार द्वारा वैकल्पिक फंड की व्यवस्था करनी चाहिए। जल्द ही प्रदेश स्तर पर संगठन की ओर से विभागीय जिम्मेदारों के समक्ष कई बार मांगपत्र प्रस्तुत किया जा चुका है।
राधेरमण त्रिपाठी जिलाध्यक्ष, प्राशिसं
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बच्चों में स्वस्थ मस्तिष्क व प्रतियोगिता की भावना विकसित करने के लिए खेलकूद बहुत जरूरी है। आरटीई में शुल्क प्रतिबंधित होने के बाद खेलकूद के लिए आवश्यक धनराशि जुटाने के लिए कोई नीति नहीं बनाई। सरकार द्वारा वित्तीय संसाधन की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।
डा.अरुणेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी जिलाध्यक्ष पूमाशिसं