इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक फैसले में कहा है कि तलाकशुदा बेटी को भी मृतक आश्रित कोटे में नौकरी पाने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित कोटे में अविवाहित और विधवा बेटी को नौकरी दी जा रही है तो तलाकशुदा बेटी को इस कोटे में नौकरी न देना अन्याय है।
कोर्ट ने कहा कि विधवा की तरह तलाकशुदा लड़की से भी पति का सहारा छिन जाता है। ऐसे में उसे मायके में सहारा मिलता है। कोर्ट ने इस संबंध में मृतक आश्रित सेवा नियमावली में परिवर्तन करने की संस्तुति की है। साथ ही प्रमुख सचिव विधि को निर्देश दिया है कि नियम में संशोधन के लिए राज्य सरकार से परामर्श करें। कोर्ट ने नियम में बदलाव की कार्यवाही के लिए उन्हें चार माह का समय दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति बी अमित स्थलकर ने रूबी मंसूरी की याचिका पर उसके वकील शिवम यादव को सुनकर दिया है। रूबी के पिता व्यापार कर विभाग में थे। उनकी सेवाकाल में मृत्यु हो गई थी।
उसके बाद रूबी ने मृतक आश्रित कोटे में नौकरी के लिए आवेदन किया तो विभाग ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली में तलाकशुदा बेटी के लिए व्यवस्था न होने के आधार पर उसे इस कोटे में नौकरी देने से इनकार कर दिया। याची के अधिवक्ता शिवम यादव का कहना था कि विधवा की तरह तलाकशुदा बेटी से भी पति का सहारा छिन जाता है। ऐसे में विधवा की तरह उसे भी मृतक आश्रित कोटे में नौकरी दी जानी चाहिए। ऐसा न करना उसके साथ अन्याय है।