तस्वीर-एक
शहर के ठंडी सड़क स्थित विद्युत उपकेंद्र के सामने पड़े कूड़े पर 13 साल का गोलू रोज की तरह कूड़ा बीन रहा था। आंखों में चाहत तो पढ़ने की थी, लेकिन रोजी-रोटी के आगे चाहत का बस कहां चलता। गोलू से जब पूछा कि वह जानता है कि शनिवार को बाल दिवस है। अजीब सा अपना मुंह बनाकर बोला, ये क्या होता है?
तस्वीर दो
हाथ में किताब की जगह कटोरा और कंधे पर बस्ते की जगह खाना रखने का झोला और मुरझाया चेहरा। 10 वर्षीय मुन्नी के लिए भी आज की खास तारीख आम दिन की तरह है। सड़क के किनारे दुकान-दुकान जाकर वह शाम के खाने के लिए पैसे जोड़ रही थी। पास से गुजरने वाले भी एक रुपया दो रुपया फेंककर चले जाते।
तस्वीर तीन
आठ वर्षीय राजू भी बाल दिवस पर बेबस दिखा। उसे न तो इस दिन के मायने पता थे और न ही कोई उसे बताने वाला था। वह चुपचाप ग्राहक के जूतों पर पॉलिश करने में जुटा था। राजू को भी इस दिवस की जानकारी नहीं थी।
जागरण संवाददाता, एटा: शनिवार बाल दिवस चित्रों पर फूलमाला चढ़ा और बड़ी-बड़ी बात करके गुजर गया। बाल कल्याण के लिए तमाम वादे हुए, लेकिन कई बेबस जिंदगी के लिए कुछ हुआ नहीं। किसी ने भी उनके लिए कुछ न सोचा। वे रोज की तरह ही अपने काम में जुटे रहे।
तीन बानगी गोलू, मुन्नी और राजू की जिंदगी जैसी ही जिले में तमाम बच्चों के हाल कुछ ऐसे ही हैं। प्रशासन और विकास का दंभ भरने वाली सामाजिक संस्थाओं ने तो सुध नहीं ही ली, लेकिन जनप्रतिनिधियों को भी उनकी बेबसी नहीं दिखी। बाल श्रमिकों की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया। जिले में बाल दिवस की तस्वीर कुछ ऐसी ही थी।
स्कूलों में भी पड़े रहे ताले
शनिवार को बाल दिवस पर स्कूलों में भी ताले लगे रहे। जिले में इक्का-दुक्का स्कूलों को छोड़ अधिकतर स्कूल बंद ही रहे। हालांकि दीपोत्सव के बाद शनिवार को सरकारी स्कूलों में बाल दिवस का आयोजन होना था।