सिद्धार्थनगर : परिषदीय विद्यालयों में बेहतर शिक्षण कार्य के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा लागू किया गया आरटीई नियम बेमतलब साबित हो रहा है। विकास खंड में स्थापित जूनियर विद्यालयों में यह मानक तो पूर्ण है, पर 148 प्राथमिक विद्यालय में इस नियम की माखौल उड़ रहा है। नतीजतन परिषदीय विद्यालयों में हाईटेक शिक्षण व्यवस्था की शासकीय मंशा तार-तार ही होती दिखाई पड़ रही है।
2009 से लागू इस व्यवस्था के तहत छात्र संख्या के अनुपात में ट्रेंड अध्यापकों की नियुक्ति का नियम है। नियम के तहत 30 छात्रों पर एक अध्यापक की नियुक्ति होनी चाहिए । यहां स्थापित प्राथमिक विद्यालयों पर नामांकित छात्रों की संख्या पर नजर दौड़ाएं तो वर्तमान में इनकी संख्या 20359 है और शिक्षक मात्र 364 नियुक्त हैं। इस प्रकार सभी प्राथमिक विद्यालयों पर 55 छात्र संख्या पर एक अध्यापक की ही नियुक्ति है। लगभग पांच वर्ष से 315 शिक्षकों की कमी ने यहां स्थापित प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षण व्यवस्था को पूरी तरह शून्य कर दिया है। वर्तमान में 202 समायोजित शिक्षा मित्रों से कुछ हद तक छात्र और अध्यापक के अनुपात में कुछ सार्थकता तो आयी पर शासन में खटाई में पड़ी इनकी नियुक्ति से वह भी निराश हो घर बैठ गये। पठन पाठन न होने की दशा में बच्चे भी स्कूल आने से कतरा रहे हैं। विद्यालयों में होने वाले शिक्षण कार्य पर गौर करें तो एक माह में औसतन 20 दिन ही शिक्षण कार्य होता है। माह में 4 रविवार सहित 6 दिन अवकाश रहता है। ऐसे में औसत उपस्थित से काफी कम बच्चों की उपस्थिति तो जो आग में घी का भी कार्य कर रहा है।
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सारी रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। यह सही है कि प्राथमिक शिक्षा को हाईटेक बनाने की शासकीय मंशा पर अध्यापकों की कमी से पानी फिर रहा है। अध्यापकों की जब तक भरपूर व्यवस्था नहीं होती तब तक गुणवत्ता पर शिक्षण कार्य संभव नहीं है।
ज्ञान चन्द्र मिश्रबीईओ, खेसरहा