जौनपुर : प्राथमिक विद्यालयों में कांवेंट स्कूलों की तर्ज पर पढ़ाई होगी। बच्चों को टाई बेल्ट, जूता मोजा मिलेगा। कंप्यूटर व अंग्रेजी शिक्षा पाकर बच्चों में निखार आएगा। यह पहेली नहीं बल्कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा दिखाया गया सब्जबाग है। जो आदर्श गांव योजना की तर्ज पर कमजोर गुणवत्ता वाले विद्यालयों को गोद लेकर भूल गए।
शासन के निर्देश पर कमजोर गुणवत्ता वाले विद्यालयों को गोद लिया गया। प्रत्येक एपीआरसी, एबीआरसी व खंड शिक्षा अधिकारी उन विद्यालयों का चुनाव किए जहां छात्रों की उपस्थिति कम थी और गुणवत्तायुक्त शिक्षा नहीं दी जाती। पाठ्य सहगामी क्रियाओं, खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम का अभाव था। अभिभावक विद्यालयों में कम संपर्क करते थे।
गोद लिए विद्यालयों में प्रतिदिन एनपीआरसी व एबीआरसी को उपस्थित रहकर छह माह तक गुणवत्ता संवर्धन का कार्य करना था। खंड शिक्षा अधिकारियों को साप्ताहिक समीक्षा भी करनी थी। अधिकारियों ने विद्यालयों को गोद तो लिया लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जो योजना में शामिल था।
केराकत क्षेत्र के पसेवा गांव निवासी अभिभावक शारदा प्रसाद ने कहा कि गरीबों के लिए योजनाएं तो बनाई जाती है लेकिन उनके लिए सपना होता था। लूट-खसोट व अधिकारियों के कर्तव्य निवर्हन न करने से करोड़ों खर्च करने के बाद भी गरीबों, मजलूमों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। चंदवक क्षेत्र के कोपा गांव निवासी राकेश विश्वकर्मा ने कहा कि नेताओं व पहुंच वाले लोगों के बच्चे पढ़ते तो शायद अधिकारी ध्यान देते। मढ़ी निवासी रमेश प्रजापति ने कहा कि सरकार चाहे जितना प्रयास कर ले प्राथमिक विद्यालयों की दशा सुधरने वाली नहीं है। वजह, इन विद्यालयों में माननीयों के बच्चे नहीं पढ़ते। जब अधिकारी जोर-जुगाड़ से नौकरी पाएंगे तो उन्हें कार्रवाई का कैसा डर।
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गोद लिए स्कूलों में क्या होनी थी खास व्यवस्था
-विद्यालयों के सभी अध्यापकों की सहमति के आधार पर ड्रेस कोड लागू होना
-बच्चों व शिक्षकों को परिचय पत्र के साथ ही विद्यालय परिसर में प्रवेश करना अनिवार्य
-सभी बच्चों को शैक्षिक गुणवत्ता के आधार पर ग्रीन हाउस, येलो हाउस व रेड हाउस में वर्गीकृत किया जाना
-कमजोर बच्चों का उपचारात्मक शिक्षण करना
-बच्चों को पढ़ाने की अपेक्षा सिखाने पर बल देना
-सभी बच्चों को किताब, कापी, पेन, पेंसिल, रबर उपलब्ध कराना
-एक कंप्यूटर कक्ष विकसित कर कक्षा तीन से सभी बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा देना
-कक्षा में एक से अंग्रेजी का ज्ञान कराना
-विद्यालय परिसर में शोभाकारी फूल पत्तियां लगाकर आकर्षक व मनमोहक बनाना
-प्रत्येक तीन माह में बच्चों की विद्यालय स्तरीय सुलेख, चित्रकला, वाद-विवाद व सांस्कृतिक प्रतियोगिता आयोजित करना
-सभी बच्चों को जूता, मोजा, टाई उपलब्ध कराया जाना
-बाल समिति व बाल मंत्रिमंडल का गठन
-विद्यालय प्रबंध समिति की बैठक प्रत्येक माह अनिवार्य रूप से आयोजित करना।