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इटावा : नियुक्ति प्रक्रिया में बह गई शिक्षा व्यवस्था

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नियुक्ति प्रक्रिया में बह गई शिक्षा व्यवस्था

इटावा, जागरण संवाददाता : ऐसा कहा जाता है कि किसी समाज के विकास का दर्पण उसके लोगों का शैक्षिक स्तर होता है। जो समाज जितना शिक्षित होगा उतना ही सभ्य भी, और इसी से उसके विकास सीढि़यां तैयार होती हैं। जनपद इटावा की बात करें तो बीता साल जहां एक ओर शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की तैनाती की समस्या से जूझता रहा, वहीं मिड-डे मील को लेकर बार-बार हुए परिवर्तन से अध्यापक परेशान हुए और सत्र परिवर्तन को लेकर भी ऊहापोह की स्थिति बनी रही। इस वर्ष शिक्षामित्रों के आंदोलन और उसके बाद उनके समायोजन को रद करने का ऐतिहासिक फैसला हलचल भरा रहा। इस सत्र में बच्चों में इन सभी जटिलताओं और कई छुट्टियों के चलते कोर्स पूरा करने की भी मारामारी जारी है। कुल मिलाकर वर्ष 2015 प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा को कुछ ऐसा नहीं दे सका जिसे उल्लेखनीय कहा जा सके। यह तब है जबकि इस जनपद ने प्रदेश को चार बार मुख्यमंत्री दिए हैं।

प्राथमिक शिक्षा

बेसिक शिक्षा में वर्ष 2015 को शैक्षिक उन्नयन वर्ष के रूप में मनाने का फैसला परवान नहीं चढ़ सका। शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की कितनी ही बातें हुईं, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। जनपद के 1240 प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को पूरा करने के प्रयास के तहत 500 टीईटी उत्तीर्ण शिक्षकों की नियुक्ति की गई और जूनियर के गणित व विज्ञान के शिक्षकों की भी भर्ती हुई। इन सबके बावजूद लंबे समय से चली आ रही अध्यापकों को संबद्ध करने की बीमारी ने वर्ष भर शिक्षा और शिक्षण को बीमार बनाए रखा। शिक्षकों का अभाव इसी से समझा जा सकता है कि कई वर्षों से नियुक्ति न होने से नगर क्षेत्र में 54 परिषदीय विद्यालयों में 251 के सापेक्ष मात्र 116 अध्यापक ही तैनात हैं।

जून में मिड-डे मील में परिवर्तन किया गया तो बुधवार को अध्यापक बर्तन लिए दूध की जुगाड़ में लगे रहे। बड़ी मात्रा में विद्यालय दूध उपलब्ध नहीं करा सके और कोफ्ता में आने वाली कनवर्जन कॉस्ट व लगने वाले समय को लेकर परेशान रहे। इन सबके बावजूद ज्यादातर परिषदीय विद्यालयों में बच्चे मिड-डे मील के बाद रुक नहीं सके। आखिरकार शासन को मिड-डे मील का मेन्यू बदलना पड़ा। शैक्षिक सत्र अप्रैल से शुरू करने के शासन के निर्णय का असर ऐसा हुआ कि नामांकन में गिरावट आई और उपस्थिति न्यूनतम स्तर पर रही। इसके अलावा बीएलओ, पोलियो, पेंशन योजना, चुनाव, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में ड्यूटी लगने के कारण भी बच्चों की शिक्षा प्रभावित रही।

माध्यमिक शिक्षा

माध्यमिक शिक्षा की बात करें तो सहायता प्राप्त 54, राजकीय 21 व 183 वित्तविहीन सहित कुल 258 विद्यालयों में इंटर तक की शिक्षा दी जा रही है। वर्तमान हालातों में निजी कॉलेजों को छोड़ दें तो इन विद्यालयों में इस वर्ष भी कंप्यूटर व प्रैक्टिकल की व्यवस्था लचर ही बनी रही। दरअसल अंशकालिक व्यवस्था में इस साल भी शिक्षकों, अनुदेशकों को उम्मीद के हिसाब से कुछ नहीं मिला जबकि सातवें वेतन आयोग से नियमित शिक्षकों को और अधिक लाभ हासिल हो गया। सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों का अभाव इस साल भी बना रहा। हालत यह है कि कहीं-कहीं तो जितने सेक्शन हैं उतने ही शिक्षक हैं। वित्तविहीन विद्यालयों में न के बराबर वेतन पर शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है। वहीं प्राइवेट स्कूल मोटी फीस लेकर शिक्षा का कारोबार जारी रखे हैं। माध्यमिक विद्यालयों में लगे व्यावसायिक शिक्षकों को 20 से 25 साल हो गए, लेकिन उनका विनियमितीकरण इस वर्ष भी न हो सका। हालांकि वर्ष 2016 चुनावी घोषणाओं के लिहाज से खास है, ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि शिक्षा व शिक्षकों के लिए कुछ विशेष किया जाए।

उच्च शिक्षा

उच्च शिक्षा में इस वर्ष एक आश्चर्यजनक बदलाव ने शिक्षाविदों व शैक्षिक संस्थान संचालकों को सोचने पर विवश कर दिया। वर्ष 2015 में डिग्री कॉलेजों एडमिशन लेने वालों की संख्या में काफी कमी देखी गई। पिछले कुछ वर्षों में हर महाविद्यालय में हर साल प्रवेश के लिए सीटें बढ़ रही थीं। इस वर्ष सीटें बढ़ना तो दूर, जो सीटें थीं वे भी न भर सकीं। इस पर विश्लेषण करने पर कई लोगों ने पाया कि प्रदेश सरकार द्वारा लैपटॉप योजना बंद कर दिए जाने से प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों में कमी आई। फिलहाल जनपद में करीब डेढ़ दर्जन महाविद्यालय संचालित हैं। हालांकि कुछ विद्यालय ऐसे भी रहे जहां सीटें पूरी भरीं। ये वे विद्यालय हैं जो एडमिशन लेने वाले बच्चों को विशेष सुविधा देते हैं। हालांकि नए बीटीसी कोर्सेस आने से रोजगारपरक शिक्षा की दिशा में एक कदम बढ़ा हुआ माना जा सकता है।

तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा

जब प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा की अवस्था ऐसी है तो तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा का हाल तो जाहिर है। मुख्यमंत्री का गृह जनपद होने के बावजूद अभी तक यहां एमसीए, एमबीए, सीए जैसे प्रोफेशनल कोर्स उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। व्यावसायिक शिक्षा गत वर्षों की तरह इस वर्ष भी कछुआ गति से औपचारिकता निभाते हुए चल रही है। इसका बच्चों को क्या लाभ मिल रहा है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। व्यावसायिक शिक्षकों का विनियमितीकरण वर्ष 2015 के लिए भी दूर की कौड़ी ही साबित हुआ।

उम्मीद 2016

बढ़पुरा व जसवंतनगर में प्रयोग के तौर पर खोले गए दो मॉडल स्कूलों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2015 पर काम चल रहा है।

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