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रायबरेली : ज्ञान के मंदिरों में कब जलेंगी शिक्षा की अलख

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-निरीक्षण के बाद भी नहीं सुधर सकी स्कूलों की स्थिति

-सरकारी स्कूलों में योजनाएं अनेक पर पढ़ाई व्यवस्था जीरो

जागरण संवाददाता, रायबरेली : सरकारी स्कूलों में सब कुछ है, लेकिन पढ़ाई नहीं। सुन कर थोड़ा अजीब जरूर लगता है पर है सौ फीसदी सच। इन्हीं कयासों से बीच फंसकर रह जाता है देश का भविष्य। सरकारी स्कूलों में वर्षों से बे-पटरी हो चुकी शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किए गए इंतजाम नाकाफी साबित हुए। इससे यहां पर पंजीकृत छात्र स्कूल आते है एमडीएम खाते है, खेलकूद करते है और बिना पढ़े-लिखे घरों को लौट जाते हैं। आखिर सरकारी स्कूलों में ऐसी पढ़ाई का क्या। सरकारी स्कूलों में योजनाओं की भरभार होने के बाद भी ज्ञान के मंदिरों ने शिक्षा की अलख नहीं लग सकी है।

जनपद में कुल 27 सौ प्राथमिक और जूनियर स्कूल बने हुए हैं। इन स्कूलों में विभागीय आंकड़ों के मुताबिक कुल 2.79 लाख छात्र-छात्राएं पंजीकृत है। वर्तमान समय में स्कूलों में शिक्षकों की संख्या में ठीकठाक है पर शिक्षा का स्कूलों में पढ़ाई लिखाई का नामों-निशान नहीं दिखता है। त्रिस्तरीय चुनाव और त्योहारों की छुट्टियों पड़ने के कारण परिषदीय स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की डोर पूरी तरह से टूट गई है। वहीं सरकारी स्कूलों में सुबह से लेकर शाम तक शिक्षक शासन द्वारा चलाई जा रही योजानाओं को पूरा करने में जुटे दिखते है। ऐसे में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई हो ही नहीं पाती। छात्र आते है और एमडीएम का स्वाद लेकर घरों को लौट जाते है। सरकारी स्कूलों में पूर्व में मनरेगा में नौकरी करने वाले 'गरीब' परिवारों ने अपने बच्चों का नाम कटवा कर कान्वेंट स्कूलों में लिखवा दिए है। क्योंकि वो जान चुके थे कि इन सरकारी स्कूलों में शिक्षण कार्य नहीं बल्कि 'पेट-पूजा' होती है। परिषदीय विद्यालयों में अक्सर निरीक्षण के दौरान खामियां मिलती है। इन खामियों में सुधार करने को लेकर दर्जनों की संख्या में नोटिसें दी गई, लेकिन शैक्षिक स्तर में सुधार नहीं दिखा है।

जिला बेसिक शिक्षाधिकारी रामसागर पति त्रिपाठी ने बताया कि निरीक्षण कर स्कूलों की हालत परखीं जा रही है। खामियां मिलने पर उन्हें दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। लापरवाही सामने आने पर कार्रवाई भी की जा रही है।

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