फत्तेपुर के बंक बहादुर कुशवाहा ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर विकलांग होने की हीन भावना को काफी पीछे छोड़ दिया। जन्म से अंधे इस नौजवान ने क्षेत्र में शिक्षा ज्योति जलाने की ठान ली है।
वह दूसरे से सहारा लेने के बजाय गरीबों का स्वयं सहारा बनना चाहते हैं। परास्नातक तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह गांव के गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं। साथ ही गायन और वादन के क्षेत्र में प्रतिभाओं की खोज में लगे हैं।
फत्तेपुर गांव के रहने वाले बंक बहादुर कुशवाहा जन्म से ही अंधे हैं।
उन्होंने अपने हौसले के दम पर अंधेपन को अभिशाप से वरदान साबित कर दिया। गरीब माता-पिता के पुत्र होने के बाद भी बंकबहादुर ने पढ़ाई की। सरकारी और लोगों के सहयोग से एमए तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद संगीत की शिक्षा भी ग्रहण की। वह तबला वादन में प्रभाकर हैं।
पढ़ाई पूरी होने के बाद बंकबहादुर प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग्य आजमा रहे हैं। खाली समय का उपयोग गरीबों के बच्चों को पढ़ाने में करते हैं।
वह क्षेत्र के सरकारी और निजी स्कूूलों में जाकर गरीबों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। रोज किसी न किसी सरकारी प्राइमरी स्कूल में दो घंटा पढ़ाना उनकी दिनचर्या बन गई है। शुक्रवार को वह रुद्रपुर तहसील क्षेत्र के करमेल बनरही गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ा रहे थे।
उन्होंने कहा कि वह विशेष कर सरकारी स्कूलों के बच्चों के बीच जाते है क्योंकि वहा अत्यंत निर्धन वर्ग के बालक पहुंचते हैं। उनके अंदर प्रतिभा की कोई कमी नहीं है।
कोशिश होती है कि उन बच्चों के अंदर से हीन भावना निकाली जाए। बंक बहादुर आधा दर्जन बच्चों को गायन और वादन सिखा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि गरीब और जन्मांध होने के बाद भी समाज के भले लोगों के सहयोग से वह उच्चशिक्षा ग्रहण कर पाए। ऐसे में वह अपनी शिक्षा का योगदान जरूरतमंद बच्चों को जीवन पर्यंत देते रहना चाहेंगे।
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