प्रयोगों की डोर से कटी शिक्षा की "पतंग "
फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता : सीबीएसई के मुकाबले सरकारी शिक्षा को खड़ा करने के लिये इस साल खूब प्रयोग हुए। जबकि हालत यह कि इन प्रयोगों से स्कूली शिक्षा की पतंग ऊंची होने के बजाय तब कटी-अब कटी जैसी कहानी में ही अटकी रही। मेक इन इंडिया से डिजिटल इंडिया तक सफर तय करने को नौनिहालों को विज्ञान व कंप्यूटर शिक्षा से लैस करने के चले प्रयास भी साल खत्म होने तक धड़ाम से आ गिरे। परिषदीय जूनियर स्कूलों में पहली बार विज्ञान शिक्षकों की सीधी भर्ती हुई। कंप्यूटर अनुदेशक भी नियुक्त हुए। इसके बावजूद साइंस व कंप्यूटर ज्ञान तो दूर पाठ्यक्रम का बेसिक ज्ञान पाने को भी नौनिहाल तरसते रह गए।
इस बार माध्यमिक व परिषदीय स्कूलों का शैक्षिक सत्र अप्रैल में शुरू हुआ। उम्मीद संजोई गई कि बदला सत्र सीबीएसई स्कूलों जैसी शैक्षिक गुणवत्ता से शिक्षा मंदिरों को ओतप्रोत कर देगा। मगर हुआ इसका उल्टा। सत्र के पहले दो माह अप्रैल और मई में ही शिक्षण गतिविधियां पूरी तरह ठप रहीं। जून में ग्रीष्मावकाश के बाद जुलाई से फिर विद्यालय खुले तो इस माह भी शिक्षा की गाड़ी आगे नहीं खिसकी। तीन माह पढ़ाई चौपट हुई तो पाठ्यक्रम पिछड़ता ही चला गया। माध्यमिक स्कूलों में बोर्ड परीक्षा की तैयारी तो प्रभावित हुई ही, अन्य कक्षाओं में भी अधकचरे ज्ञान से गाड़ी आगे ¨खची। गुणवत्ता के लिहाज से यह साल जरा भी अभिभावकों को संतोष की फुहार में नहीं भिगो सका।
सालती रही शिक्षकों की कमी
माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी पूरे वर्ष सालती रही। राजकीय इंटर कालेज हों या फिर अनुदानित कालेज, महत्वपूर्ण विषयों में अध्यापक न होने से छात्रों में कुंठा माह दर माह बढ़ती रही। भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान व अंग्रेजी के अध्यापकों की कमी इस साल और बढ़ गई। जनपद में 60 माध्यमिक शिक्षक सेवानिवृत्त हुए, लेकिन नई नियुक्तियां नहीं हुईं।
समायोजन में भारी पड़ा असमंजस
परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 1670 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन हुआ। हाईकोर्ट से समायोजन निरस्त होने का आदेश आते ही आंदोलन शुरू हो गया। इस आंदोलन ने शिक्षकों की समस्या से जूझ रही प्राथमिक शिक्षा पर बुरा असर डाला। जिन स्कूलों में केवल शिक्षामित्र ही तैनात थे, वहां पढ़ाई को ब्रेक लगा रहा।
नहीं मिला शिक्षा का हक
जिले की 65 बस्तियों में प्राथमिक व 10 बस्तियों में उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना होनी थी। सर्व शिक्षा अभियान की जनपदीय कार्ययोजना व बजट में इन बस्तियों में नवीन विद्यालय खोलने के लिये प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन एक भी नवीन विद्यालय स्वीकृत नहीं हुआ। इन गांवों के बच्चों को पड़ोस में प्राथमिक शिक्षा का बुनियादी हक नसीब नहीं हो पाया।
स्वच्छ शौचालय की राह में कांटे
विद्यालयों में स्वच्छ शौचालय की राह में कांटे भी दूर नहीं हो सके। 300 से ज्यादा स्कूलों के शौचालय जर्जर हालत में हैं। कहीं सीट टूटी है तो कहीं टैंक ध्वस्त और गेट नदारद। पर्याप्त बजट न मिलने से जर्जर शौचालयों का उद्धार सपना ही बना रहा। इस साल महज 50 स्कूलों के शौचालयों को ही ठीक कराया जा सका।
नहीं शुरू हुए माडल स्कूल
शमसाबाद ब्लाक में राजकीय माडल स्कूल रोशनाबाद के लोकार्पण पत्थर का लखनऊ में मुख्यमंत्री द्वारा अनावरण हो जाने के बावजूद विद्यालय में पढ़ाई नहीं शुरू हो सकी। राजेपुर में माडल स्कूल कनकापुर व राजकीय बालिका इंटर कालेज भी चालू नहीं हो पाया।