बाल मन में जला रहे व्यावहारिक ज्ञान की ज्योति
छिबरामऊ, संवाद सहयोगी : प्राथमिक विद्यालय में अध्यापकों के गायब रहने की चर्चा होती है, लेकिन सभी ऐसे नहीं है। एक प्रधानाध्यापक हैं जो कि बच्चों को नियमित शिक्षा के अलावा उन्हें व्यवहारिक और सामाजिक ज्ञान देने के लिए अतिरिक्त कक्षाएं संचालित करते हैं। इन कक्षाओं में कमजोर बच्चों के साथ मेहनत कर उन्हें मुख्य धारा में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कुंअरपुर बनवारी में प्रधानाध्यापक सुरेश चंद्र शास्त्री ने प्राथमिक शिक्षा विभाग में 1992 में सहायक अध्यापक पद पर ज्वाइन की। तब से ही वह अपने शिक्षण कार्य के लिए चर्चा में रहे। पूर्व माध्यमिक विद्यालय कुंअरपुर बनवारी में वह पिछले दो वर्षों से तैनात हैं। उनकी कार्यशैली ऐसी रही कि बच्चों के बीच आज विद्यालय में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। वह बच्चों को किताबी ज्ञान देने के साथ उन्हें व्यवहारिक ज्ञान भी मुहैया करवा रहे हैं। इसमें पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और श्रमदान भी हैं। उनकी ही शिक्षा के कारण बच्चों ने विद्यालय प्रांगण में तुलसी, गन्ना, गेंदा, गुलाब आदि के पौधे लगाये हैं। वह बच्चों को उनकी देखभाल करना भी सिखाते हैं। जीवन में स्वच्छता का महत्व बताने को उन्होंने कोई कक्षाएं नहीं लगायी, बल्कि वह बच्चों को उसको लोगों व गांव की गलियों में ले जाकर समझाते हैं। वह बच्चों को स्वच्छता अभियान का हिस्सा बनाकर ग्रामीणों को भी जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिये बच्चों के साथ प्रत्येक गुरुवार को वह लोगों के बीच जाकर स्वच्छता का पाठ पढ़ा रहे हैं। वह बच्चों को अपने आसपास का परिवेश साफ रखने के साथ ही शारीरिक स्वच्छता के लिए जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। इसको लेकर बच्चे प्रतिदिन विद्यालय में योग के अंतर्गत प्राणायाम व अनुलोम विलोम जैसी क्रियायें सीख रहे हैं। विद्यालय की प्रार्थना सभा भी ढोलक व हरमोनियम की धुन पर होती है। वह निजी खर्च पर वाद्य यंत्रों की व्यवस्था भी करते हैं। इसके अलावा कमजोर बच्चों को प्रतिदिन विद्यालय से पहले एक घंटे का अतिरिक्त शिक्षा देते हैं। उनसे ही प्रभावित होकर उन्होंने ग्राम प्रधान ने विद्यालय परिसर में सीमेंटेड ईट बिछवा कर रास्ता बेहतर कर दिया। बच्चों के निवेदन पर ग्रामीणों ने भी रास्ते से अतिक्रमण हटा लिया। प्रधानाध्यापक सुरेश चंद्र शास्त्री ने कहा कि उनका उद्देश्य बच्चों में सभी प्रकार की जागरूकता पैदा करना है। बच्चों को शिक्षा के अलावा सामाजिक सरोकारों से भी लगाव होना चाहिए।