शिक्षा की पौधशाला बनी जीवनशाला
गोंडा: गरीबी की मार, किताबों से दूर, पढ़ाई की चाह रखने वाले गरीब बच्चों के सपनों को साकार करने की मुहिम को जीवनशाला के माध्यम से एक पड़ाव मिल रहा है। यहां पर न तो उन्हें फीस की ¨चता है, न ही यूनिफार्म की, यही नहीं किताबों व कापियों की व्यवस्था से भी वह बेफिक्र, ऐसे माहौल में गरीब बच्चों के लिए संचालित जीवनशाला उन्हें नई ऊंचाइयां प्रदान करने में जुटी हुई हैं।
बात करते हैं, वर्ष 2012 की। एक ग्राउंड में कुछ बच्चे खेल रहे थे। बच्चों को देख सेंट जेवियर्स हायर सेकंडरी स्कूल की प्रबंधक सुजैन दत्ता वहां पर रुक गईं। उन्होंने बच्चों को पास बुलाया। उनसे पढ़ाई के बारे में पूछा तो वह कोई जवाब नहीं दे सके। इसके बाद वह बच्चों के साथ उनके घर पहुंच गई। वहां पर जब बच्चों से बात किया तो माता पिता ने गरीबी का हवाला देते हुए पढ़ाई में आने वाली दिक्कतों के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने उनके घर की स्थिति की जानकारी जुटाई। घर में पिता रिक्शा चलाकर अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का बंदोबस्त करने की फिक्र में जुटा हुआ था। माता दूसरों के घर में काम करने में लगी हुई थीं। यह देख उन्होंने गरीब बच्चों को शिक्षा की मुहिम से जोड़ने की योजना पर काम शुरू कर दिया।
वापस आकर उन्होंने अपने सहयोगियों से इस पर मंथन किया। इसके बाद एक नए स्कूल की आधार शिला तैयार हो गई। फिर क्या था, कोशिशें रंग लाईं और सेंट जेवियर्स हायर सेकंडरी स्कूल में ही गरीब बच्चों के लिए जीवनशाला शुरू हो गई। दोपहर में जीवनशाला की यहां पर कक्षाएं शुरू हो गईं। यहां पर गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए पूरी व्यवस्था की गई है।
जीवनशाला में प्रवेश के लिए गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने का प्रमाण देना होता है। अगर किसी के पास नहीं है तो ऐसे गरीब अभिभावकों के बच्चों को कॉलेज की टीम स्वयं खोजती है, जिनके पास बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसा नहीं होता है। यहां पर बच्चों को सीबीएसई पैटर्न पर शिक्षा दिया जाता है। उनके सपनों को साकार करने के लिए बच्चों से न तो कोई फीस ली जाती है, न ही अन्य कोई शुल्क। तीन साल पहले आठ बच्चों से शुरू हुई जीवनशाला अब 200 बच्चों की संख्या पार कर चुकी है।
होती हैं प्रतियोगिताएं
- यहां पर शिक्षकों की टीम आपस में पैसा एकत्र करके इन बच्चों की प्रतियोगिताएं कराता है। बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए खेलकूद के साथ ही शैक्षिक गतिविधियों के साथ ही जागरूकता संबंधी प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। जिसमें बच्चों को सम्मानित किया जाता है।
बदल गया लुक
- तीन साल पहले राजन सही तरीके से अपना नाम नहीं बता पाता था लेकिन वक्त बदला, परिवेश बदला। जीवनशाला ने उसका नया सृजन कर दिया। अब वह आसानी से अंग्रेजी में न केवल अपना परिचय दे रहा है बल्कि देश व विदेश में होने वाली घटनाओं के बारे में भी जानकारी दे रहा है।
रात के अंधेरे में शिक्षा का उजियारा
- धानेपुर के महेशभारी गांव के केबी लाल उच्च प्राथमिक विद्यालय बनकटी सूर्यबली ¨सह में तैनात है। स्कूल का काम निपटाने के बाद वह जब शाम को घर आते हैं तो वह बच्चों को पढ़ाई में जुट जाते हैं। पिछले दो साल से मोहल्ले के बच्चों की कक्षाएं लग जाती है। वह बच्चों को पढ़ाते हैं, उनका मार्गदर्शन करते हैं। बच्चों को लैपटॉप के माध्यम से वह विभिन्न गतिविधियों की जानकारी देते हैं।