अंबेडकरनगर : सरकारी स्कूलों में बच्चों को दूध पिलाने के चक्कर में भोजन का जायका कम होता नजर आने लगा है। कारण दूध के लिए कोई अतिरिक्त बजट की व्यवस्था नहीं है, इसका भुगतान एमडीएम बनाने पर आने वाले परिवर्तन लागत मद यानि कन्वर्जन कास्ट से करना पड़ रहा है। इस स्थिति को लेकर गुरुजी उहापोह में फंसे हैं। शासन की ओर से परिषदीय स्कूलों में छात्रों को प्रत्येक बुधवार को 200 मिलीलीटर गर्मागर्म दूध दिए जाने का आदेश है। यह बात दीगर है कि मध्याह्न भोजन प्राधिकरण की ओर से इसके लिए अतिरिक्त बजट नहीं दिया जा रहा है।
एमडीएम बनाए जाने के लिए गैस व लकड़ी के अलावा तेल, मसाला व नमक आदि को कन्वर्जन कास्ट यानी कि परिवर्तन लागत के जरिए ही पूरा किया जाता है। ऐसे में एकमुश्त दूध की खरीद पर बुधवार के दिन के कन्वर्जन कास्ट से इसका भुगतान संभव नहीं दिख रहा है। अहम पहलुओं की ओर गौर किया जाए तो दूध को गर्म किए जाने के लिए ईंधन पर आने वाले खर्च के अलावा कोप्ता और चावल बनाए जाने में भी कन्वर्जन कास्ट से बुधवार को ही भुगतान वहन करना होगा। ऐसे में न्यूनतम दर 30 रुपये लीटर मिलने वाला दूध पांच छात्रों को ही पिलाया जा सकता है। इस दर से प्रत्येक छात्र पर छह रुपये खर्च होंगे। अनुमान लगाया जाए कि प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में औसतन उपस्थित करीब 50 छात्र तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों में सौ छात्रों की उपस्थिति को लेकर प्रति बुधवार को प्राथमिक में 300 रुपये तथा उच्च प्राथमिक में 600 रुपये का भुगतान कन्वर्जन कास्ट से किया जाएगा। मौजूदा समय विभाग की ओर से प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्येक छात्र को भोजन दिए जाने में 3.59 रुपये तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रति छात्र 5.38 रुपये की दर से कन्वर्जन कास्ट का भुगतान किया जाता है। बुधवार को अकेले दूध पर ही प्रति छात्र छह रुपये खर्च होने की दशा में कोप्ता चावल बनाए जाने पर बजट का सवाल खड़ा हो गया है। वहीं दूध की उपलब्धता हासिल करना भी काफी मुश्किल है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी राज बहादुर मौर्य का कहना है कि कन्वर्जन कास्ट में प्रतिवर्ष साढ़े सात प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। इसी बजट से दूध पिलाने की व्यवस्था होगी।