पेंशन बंद होने पर शिक्षकों का छिन गया बुढ़ापे का सहारा
कन्नौज, जागरण संवाददाता : सरकार ने अप्रैल 2005 से शिक्षकों को सेवानिवृत्त होने के बाद मिलने वाले फंड व पेंशन को समाप्त कर दिया था। इससे शिक्षकों के पास रिटायर्ड होने के बाद बुढ़ापे में रोजी-रोटी का कोई सहारा नहीं बचा। सरकार का यह निर्णय कर्मचारियों के पारिवारिक हितों के खिलाफ है, जो न्यायोचित नहीं है।
यह बात पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने प्रधानमंत्री को भेजे गए ज्ञापन में कही। उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन शिक्षकों को वर्ष 5 से बाद फिर से प्रदान की जाए। विधान परिषद सदस्य के चुनाव में माध्यमिक विद्यालयों के सहायता प्राप्त व वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों को चुनाव लड़ने तथा मत देने का अधिकार होता है। वहीं बेसिक शिक्षकों को चुनाव लड़ने व मत देने का अधिकार ही नहीं है। इस चुनाव में शिक्षकों को समानता प्रदान की जाए। बेसिक शिक्षा विभाग में सर्व शिक्षा अभियान के तहत अनुदेशकों की नियुक्त की गई थी। कार्यरत अनुदेशक के साथ बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार किया जा रहा है, जो सही नहीं है। इन अनुदेशकों को कम से कम 20 हजार रुपए मानदेय दिया जाए। साथ ही विद्यालयों में 100 छात्रों की बाध्यता समाप्त की जाए। महिला अनुदेशकों को प्रसूति अवकाश की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। अनुदेशकों को पूर्ण कालिक शिक्षक का दर्जा देते हुए समायोजित किया जाए। मृतक शिक्षकों के आश्रितों को योग्यतानुसार अप्रशिक्षित शिक्षक के पद पर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति प्रदान की जाए। नियुक्ति के उपरांत विभागीय आधार पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। साथ ही बीएड प्रशिक्षण प्राप्त एवं शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके मृतक आश्रितों को नियुक्ति प्रदान की जाए। पदाधिकारियों ने कहा कि मांगों को पूर्ण न होने पर शिक्षक एवं 42 हजार अंशकालिक अनुदेशक 26 फरवरी को जंतर-मंतर नई दिल्ली में विशाल धरना-प्रदर्शन करेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। इस मौके पर संगठन के अध्यक्ष अमर ¨सह राठौर, महामंत्री विवेक चतुर्वेदी, कोषाध्यक्ष बालकृष्ण सविता समेत कई पदाधिकारी व सदस्य मौजूद रहे।