उन्नाव, जागरण संवाददाता : जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर एक छोटे से गांव में रहने वाली स्वाती उम्र में भले ही अभी कम हो पर हौसला कुछ कर गुजरने का है। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों में अशिक्षा के कारण मिली गरीबी को अंदर तक महसूस करने के बाद उसने अब ठान लिया है कि वह आसपास किसी को भी अशिक्षित नहीं रहने देगी। स्वाती का मानना है कि गरीब से जंग जीतने को सबसे अधिक यदि किसी हथियार की आवश्यकता है तो वह शिक्षा है। उसके बिना कुछ भी संभव नहीं।
अपनी इसी सोच को सही साबित करने के लिए उसने गांव के बच्चों को शिक्षित करने का अभियान चलाया है। गांव के बच्चों को नियमित रूप से वह शिक्षित करने का कार्यक्रम चला रही है। 40-40 बच्चों के दो बैच चला कर उन्हें नियमित रूप से घर के आंगन में पाठशाला चलाती है। इसमें वह बच्चों को क, ख, ग से लेकर एबीसीडी और पहाड़े व अन्य विषयों का अध्ययन कराती है। जी हां यह है सिकंदरपुर कर्ण ब्लाक के गांव मवईया माफी गांव के मुन्ना मिश्रा की पुत्री स्वाती। बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा स्वाती अपनी पढ़ाई के साथ गांव के दूसरे छोटे बड़े बच्चों को पढ़ाती है। यह पढ़ाई केवल अक्षर ज्ञान नहीं बल्कि निजी स्कूल में होने वाली अंग्रेजी और ¨हदी माध्यम जैसी होती है। सुबह का दस बजते ही उसके आंगन में 40 बच्चों की फौज कापी बस्ता लेकर खड़ी हो जाती है। वह भी पूरी तैयारी के साथ। जहां सभी बच्चों को होमवर्क और क्लास वर्क मिलता है। ठीक इसी तरह से पढ़ाई की प्रक्रिया दूसरी पाली में शुरू होती जिसमें गांव और पड़ोसी गांव के बच्चे भी पढ़ने पहुंचते हैं।
खुद से ही ली सीख
माता पिता में शिक्षा के अभाव के चलते गरीबी से जूझते हुए मिली मुश्किलों से दो चार हो रही स्वाती गांव में रहने वाली दूसरी सहेलियों और महिलाओं आदि को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। इन सब से बचने वाले समय में वह अपनी पढ़ाई भी पूरी कर रही है। खास बात यह है कि तमाम मुश्किलों के बीच अपनी पढ़ाई कर रही स्वाती पढ़ाने के लिए एक पैसा भी नहीं लेती। बल्कि उसका कहना है कि शिक्षा दान है जो बांटने से बढ़ता है।
मुश्किलों ने सिखा दिया जीना
एक बीघा खेती के मालिक उसके पिता मुन्ना मिश्रा आर्थिक रूप से इतने कमजोर हैं कि बच्चों की पढ़ाई कौन कहे उनके खाने का जुगाड़ करना भी मुश्किल होता है। इसके बाद भी स्वाती की सोच परिवार के लिए प्रेरणा बनी और उसका एक भाई बीए व दूसरा इंटर की पढ़ाई कर रहा है। स्वाती विपरीत हालात में रहने के बाद भी हर सुबह नई सोच के साथ अपने मिशन पर काम करती है। हमेशा प्रसन्न स्वभाव के साथ रहना उसकी आदत है। गांव की महिलाएं भी स्वाती के इस प्रयास की कायल हो चुकी हैं। उन सभी का कहना है कि कौन करता है इतना। हम लोग तो समय नहीं दे पाते हैं। फिर अपनी पढ़ाई के साथ दूसरों के बच्चों को कौन पढ़ाता है।