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सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ सकते अफसरों के बच्चे : कोर्ट के इस आदेश को लागू कराने की मांग को लेकर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय सड़क पर उतर आए, समर्थन में कई महिलाएं व पुरुष भी उतर आए

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सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ सकते अफसरों के बच्चे : कोर्ट के इस आदेश को लागू कराने की मांग को लेकर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय सड़क पर उतर आए, समर्थन में कई महिलाएं व पुरुष भी उतर आए

लखनऊ । सरकारी स्कूलों पर हर साल सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों को मोटा वेतन भी दिया जा रहा है। साथ ही बच्चों को खाने से लेकर सारी सुविधाएं भी मिल रही हैं, फिर भी अफसर अपने बच्चों को इन स्कूलों में क्यों नहीं पढ़वा सकते। जबकि इसके लिए हाईकोर्ट ने आदेश भी जारी किया है।

कोर्ट के इस आदेश को लागू कराने की मांग को लेकर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय सड़क पर उतर आए हैं। वह पिछले तीन दिनों से हजरतगंज स्थित जीपीओ पर अनशन पर बैठे हैं, उनके समर्थन में कई महिलाएं व पुरुष भी उतर आए हैं।

मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय ने कहा कि आखिर अफसर अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ा सकते, जबकि यहां भी सभी सुविधाएं दी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार पूरी तरह से संवेदनहीन हो चुकी है। जनहित के मुद्दे पर कोई विचार करने को तैयार ही नहीं है। यदि इन सरकारी स्कूलों में अफसरों के बच्चे पढ़ने लगेंगे तो उनकी तस्वीर अपने आप बदल जाएगी। समाजसेवी अनिल गौतम ने कहा कि सरकारी स्कूलों के नाम पर सिर्फ लूट खसोट हो रही है।

करोड़ों की योजनाएं चलाकर सब अपनी जेब भर रहे हैं। इन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक और शिक्षामित्र तक अपने बच्चों को यहां नहीं पढ़ाना चाहते। समाजसेवी मजहर आजाद ने कहा कि हाईकोर्ट के इस फैसले को इसी वर्ष से लागू किया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि करीब आठ महीने पहले हाईकोर्ट ने फैसला दिया था। जिसमें सरकारी वेतन पाने वाले अधिकारी और कर्मचारी के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाए जाने की बात की गई थी। हालांकि इस आदेश का पालन करने की जगह अफसर कोर्ट की शरण चले गए।

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  1. 📌 सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ सकते अफसरों के बच्चे : कोर्ट के इस आदेश को लागू कराने की मांग को लेकर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय सड़क पर उतर आए, समर्थन में कई महिलाएं व पुरुष भी उतर आए
    👉 http://www.primarykamaster.net/2016/04/blog-post_665.html

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