किताबें हैं नहीं कैसें पढ़ें परिषदीय छात्र?, परिषदीय स्कूलों का सत्र एक अप्रैल से शुरू किताबें सितम्बर -अक्टूबर में मिलें तो बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक
बस्ती: परिषदीय स्कूलों का सत्र एक अप्रैल से शुरू हो गया पर अब तक बच्चों को नई किताबें नहीं मिल सकी हैं। पता चला है कि नई किताबें अक्टूबर से पहले नहीं आ सकेंगी। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बाधित होगी। विभाग ने नई किताबें आने तक वैकल्पिक व्यवस्था के तहत इंतजाम किया था कि जिन बच्चों का अगली कक्षा में नाम लिखा गया है उनकी किताबें शिक्षक जमा करा लें तथा नए बच्चों को पढ़ने के लिए वह दे दी जाएं। पर यह योजना सफल नहीं हो पा रही है। इसका मूल कारण सरकारी किताबों की गुणवत्ता है। शिक्षकों का कहना है कि सरकारी आपूर्ति की जो किताबें बच्चों को पढ़ने के लिए आती हैं उनका कागज इतना खराब होता है कि बच्चे उन्हें वर्ष भर संभाल कर नहीं रख पाते हैं। किताबों के पन्ने सत्र बीतते-बीतते फट जाती हैं या पन्ने बिखर जाते हैं। यदि सरकारी किताबों के कागजों की गुणवत्ता ठीक होती तो निश्चित रूप से वह दूसरे बच्चों के काम आ जातीं। इधर स्कूलों में जो पढ़ाई हो रही है वह भगवान भरोसे है। इक्का दुक्का जो पुरानी किताबें उपलब्ध हैं उन्हीं से शिक्षक किसी प्रकार पूरी क्लास को पढ़ा रहे हैं। अधिकांश स्कूलों में तो यह इंतजाम भी नहीं हो सका है। बस बच्चों को कक्षा में बांधे रखने के लिए शिक्षक सामान्य ज्ञान की ही जानकारी बच्चों को दे पा रहे हैं।
शिक्षकों का कहना है कि बच्चों के हाथ में किताबें होतीं तो उन्हें कक्षा में पढ़ाने में तथा गृह कार्य देने में सुविधा होती। किताबों के अभाव में अप्रैल और मई का पूरा समय तो बर्बाद होगा ही गर्मी की छुट्टी भी बर्बाद हो जाएगी। यह सोचने वाली बात है कि अप्रैल से शुरू हुआ सत्र और किताबें अक्टूबर में मिलें तो बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक ही है।
बीएसए ने कहा
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी डा. संतोष कुमार ¨सह ने कहा कि किताबों की आपूर्ति शासन स्तर से होती है। जिले तक आने और स्कूलों तक पहुंचने में अमूमन सितंबर-अक्टूबर तक का समय व्यतीत हो जाता है। ऐसे में बच्चों को पुरानी किताबों से ही पढ़ाया जाता है। पुरानी किताबें उन बच्चों से एकत्र की जाती हैं तो अगली कक्षा में प्रवेश ले चुके होते हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई पर कोई असर नहीं पड़ता है।