खाद्यान्न न कनवर्जन कास्ट, आखिर कैसे बने एमडीएम
अमेठी: न खाद्यान्न है न कनवर्जन कास्ट। फि र भी बेसिक शिक्षा परिषद सरकारी आदेश के अनुपालन में परिषदीय विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन देने का स्वाग रच रहा है। चिलचिलाती धूप, रमजान का पावन महीना और बागों में आम जामुन की धूम के आगे स्कू लों में बच्चे ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। मई माह से अब तक स्कूलों में बनने वाले भोजन में प्रयुक्त होने वाला राशन तक विद्यालय के भोजन प्रबंध समितियों को नहीं मिला है। इतना ही नहीं भोजन तैयार करने में व्यय होने वाली कनवर्जन कास्ट भी खातों में नहीं भेजी गयी है। ऐसे में स्कूलों में दोपहर का भोजन देने की बात करना भी बेमानी ही है।
परिषदीय विद्यालयों में शिक्षण कार्य प्रारंभ होने में मात्र 10 दिन शेष है। इतने के बावजूद बेसिक शिक्षा परिषद का कोई करिश्मा देखने को नहीं मिल रहा है। छात्रों को निश्शुल्क दी जाने वाली पाठ्य पुस्तकें भी अब तक ब्लाक संसाधन केंद्रों पर नहीं पहुंची हैं। शिक्षकों को दोतरफ ा डांट सहना मजबूरी है। राशन व कनवर्जन कास्ट के लिए प्रतिदिन प्रधान जी की डांट और खाना न बने तो साहब की कार्रवाई की मार। ऐसे में गुरू जी की भूमिका मरता क्या न करता वाली ही है। गुरू जी रोज खाना बनवाने के पक्षधर हैं तो प्रधान जी सामान मिलने के। फि लहाल इसी असमंजस में 21 दिन का सफ र बीत चुका है। मात्र 10 दिन ही गुरू जी को सरकार के आदेश के पीछे भाग दौड़ करना है। ग्राम प्रधानों व शिक्षकों ने कई बार प्रशासन से राशन व कनवर्जन कास्ट दिए जाने की माग की फि र भी वह खाली हाथ हैं। इस संबंध में खंड शिक्षा अधिकारी रियाज अहमद कहते हैं कि सरकार की व्यवस्था के साथ चलना शिक्षकों व भोजन प्रबंध समितियों की मजबूरी है।