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लखनऊ : शिक्षक भर्ती में लेटलतीफी पर फंसीं पूर्व जेडी, शासन ने जारी की कारण बताओ नोटिस, मांगा जवाब, फर्जी डिग्री भी बड़ी वजह

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लखनऊ : शिक्षक भर्ती में लेटलतीफी पर फंसीं पूर्व जेडी, शासन ने जारी की कारण बताओ नोटिस, मांगा जवाब, फर्जी डिग्री भी बड़ी वजह

डेली न्यूज़ नेटवर्कलखनऊ। राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में दो साल पहले शुरू की गई एलटी शिक्षक भर्ती प्रक्रिया समय से पूरी न करना पूर्व संयुक्त शिक्षा निदेशक सुत्ता सिंह को भारी पड़ गया है। कार्यों में लापरवाही पर शासन ने सख्त नाराजगी जताई है। इस मामले में माध्यमिक शिक्षा के प्रमुख सचिव जितेंद्र कुमार के आदेश पर उप शिक्षा निदेशक इलाहाबाद डॉ.प्रदीप कुमार ने तत्कालीन संयुक्त शिक्षा निदेशक सुत्ता सिंह को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है। पत्र में साफ कहा गया है कि यदि नोटिस का जवाब नहीं दिया गया तो गुण दोष के आधार पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी।दरअसल, लखनऊ मंडल के राजकीय विद्यालयों में 741 रिक्त पदों पर एलटी शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसमें भर्ती मेरिट के आधार पर होनी थी। भर्ती के आदेश 22 जुलाई 2014 को दिए गए थे और एक ही चरण में प्रक्रिया पूरी करने के आदेश भी जारी किए गए थे। लेकिन अब तक सिर्फ 620 अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी किए गए हैं। इनमें से सिर्फ 132 अभ्यर्थियों ने ही कार्यभार ग्रहण किया। यह संख्या काफी न्यून है। जारी पत्र के मुताबिक तत्कालीन संयुक्त शिक्षा निदेशक को निर्देश दिए गए थे कि वे व्यक्तिगत रूप से विश्वविद्यालयों के कुलसचिव से संपर्क कर सत्यापन की कार्यवाई केलिए प्रभावी पैरवी करें। आरोप है कि दो वर्ष बीतने के बाद भी अब तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। इससे साफ है कि तत्कालीन संयुक्त शिक्षा निदेशक ने अपने कार्यकाल में शासकीय दायित्वों का समुचित ढंग से निर्वहन न करके शासकीय कार्यों के प्रति लापरवाही एवं उदासीनता बरती। जो कर्मचारी आचरण नियमावली के विरुद्ध है।

शिक्षक भर्ती की लेटलतीफी में फर्जी डिग्री मिलना भी बड़ी वजह है। मेरिट सूची में चयन के बाद जब इन दस्तावेजों का सत्यापन कराया गया तो सैकड़ों की संख्या में फर्जी प्रमाण पत्र पकड़े गए। शासन ने ऐसे अभ्यर्थियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के आदेश जारी किए थे। लखनऊ में तत्कालीन संयुक्त शिक्षा निदेशक सुत्ता सिंह ने 123 फर्जी अभ्यर्थियों के खिलाफ वजीरगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज करा दी। उसके बाद जिन विश्वविद्यालयों में सत्यापन भेजे गए, वहां रिपोर्ट देने में भी आनाकानी की जा रही।

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