नन्हे कंधों पर बस्ते की जगह परिवार का बोझ
बाल अधिकार पर बातें खूब होती हैं। योजनाएं बनती हैं। कमेटियां गठित होती हैं मगर जिन बच्चों के लिए यह सब किया जाता है, वे किस हाल में हैं यह जानने की ईमानदार कोशिश कोई नहीं करता।
ऐसा होता तो सड़कों पर कूड़ा बीनते, ढाबों पर बर्तन धोते, पंचर लगाते, चाय बनाते बच्चे नहीं दिखते। अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते ये ‘छोटू’ शहर में आपको जगह-जगह दिख जाएंगे।
जानकारों के अनुसार शहर में 15 से 20 हजार बाल मजदूर हैं और इनकी संख्या प्रतिवर्ष 20 फीसदी की बढ़ रही है। राकेश मार्ग पर चाय के बर्तन साफ करते हुए विनोद ने बताया कि पापा नहीं हैं, मम्मी घरों में काम करती हैं, तीन भाई-बहन हैं जो छोटे हैं।
ऐसे में वह मम्मी की मदद के लिए चाय की दुकान पर काम करता है। ढाबे और होटलों पर काम करने वाले छोटुओं की कुछ ऐसी ही मजबूरियां हैं। हैरत की बात तो यह है कि वर्ष 2015-2016 के हाउस होल्ड सर्वे में विद्यालय न जाने के कारणों में होटल, ढाबों पर काम करने वाले बच्चों की संख्या शून्य बताई गई है।
ऐसे ही पूरे जनपद में महज 469 बच्चे ही ऐसे बताए गए हैं जो स्कूल नहीं जाते। हालांकि यह सर्वे हकीकत से कोसों दूर है।
बच्चों की शिक्षा पर खर्च दिखाते हैं 20 करोड़
सर्व शिक्षा अभियान के तहत बच्चों की शिक्षा पर जिले में हर साल लगभग 20 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। बावजूद इसके स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए केंद्र सरकार मिड डे मील योजना चला रही है। जिले के परिषदीय स्कूलों के करीब एक लाख बच्चों के मिड डे मील पर प्रतिमाह लगभग 65 लाख रुपये तक का बजट है। बावजूद बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच रहे।
क्या कहते हैं अधिकारी
विभाग की पूरी कोशिश होती है कि प्रत्येक बच्चा स्कूल पहुंचे। इसके लिए जागरूकता रैली निकाली जाती है। हाउस होल्ड सर्वे भी होता है। धीरे-धीरे आउट ऑफ स्कूल बच्चों की संख्या घट रही है, आने वाले वर्षों में प्रत्येक बच्चा स्कूल पहुंचने लगेगा। इसके लिए अभिभावकों को जागरूक करने का काम शिक्षा विभाग कर रहा है। डा. प्रवेश यादव, बीएसए
टीएचए में सैकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित
करीब तीन हजार झुग्गियां हॉट सिटी में हैं और इनमें रहने वाले सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नहीं है। महिलाएं और किशोरियां जहां घरों में चौका-बर्तन और सफाई का काम कर पैसे कमा रही हैं. वहीं उनके बच्चे होटलों, चाय के खोखों और दुकानों में काम कर रहे हैं। इन बच्चों को स्कूल नहीं भेजे जाने का सबसे बड़ा कारण प्रशासन में इच्छाशक्ति की कमी माना जाता है।
- कुछ महिलाओं ने उठाई बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी
अपने स्तर पर झुग्गियों में रह रहे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया है। जिसमें पति भी सहयोग करते हैं। बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा देने के बाद 10वीं की प्राइवेट परीक्षा दिलाई जाती है। जिससे बच्चों का भविष्य संवर सके।
- अनुपमा सक्सेना, वैशाली सेक्टर-5
बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा देने के बाद 10वीं और 12वीं की शिक्षा दिलाने के लिए लोगों से बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उठाने की अपील की जाती है। लोग आगे भी आ रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग से कोई मदद नहीं मिलती।
- निप्रा मजूमदार, वैशाली सेक्टर-3
- विधायक बोले, विधानसभा में उठाएंगे मुद्दा
विधायक अमरपाल शर्मा ने कहा कि शिक्षा का अधिकार सभी बच्चों को है। झुग्गी में रहने वालेे बच्चों को शिक्षित किए जाने की दिशा में गंभीरता बरती जाए, इसके लिए विधानसभा में मुद्दा उठाएंगे।