लखनऊ : एक बार ज्यादा नहीं मिला पंजीरी, बच्चों की सेहत सुधारने के नाम पर चल रही हैं कई योजनाएं, लेकिन सबका हाल बुरा, अब 15 जुलाई से शुरू हो रही है हौसला पोषण योजना
ऐसे ही एक और योजना पोषण वाटिका मिशन की शुरुआत की गई थी। इसके तहत वाटिकाओं में फल और सब्जियां उगाकर कुपोषित बच्चों और उनकी माताओं को दी जानी थी। जैसे-तैसे शेरपुर लवल गांव में पोषण वाटिका के नाम पर आंगनबाड़ी केंद्र से सटी एक बीघा जमीन चिह्नित की भी गई थी। ग्रामीणों के मुताबिक करीब आठ महीने पहले इस जमीन पर कुछ साग-सब्जियों और फलों के पौधे लगाए गए थे, लेकिन यहां न सिंचाई का कोई साधन था, न ही पौधों की सुरक्षा को लेकर जमीन की घेराबंदी की गई। एक दिन भैंस खेत में घुस गई और सभी पौधे चर गई।
•टीम एनबीटी, लखनऊ । निगोहां के शेरपुर लवल गांव में रहने वाली मीरा के दो बेटे हैं- ढाई साल का रवि और डेढ़ साल का सनी। दोनों अतिकुपोषित हैं। इनके जैसे लाखों बच्चों की सेहत सुधार के लिए 15 जुलाई से 'हौसला पोषण योजना' शुरू की जा रही है। इसके तहत आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों और गर्भवतियों को पके पकाए भोजन के साथ दूध और देशी घी दिया जाएगा, जबकि सच्चाई ये है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को पंजीरी भी महीने में एक ही बार मिलती है। यही नहीं कुपोषित बच्चों को फल और सब्जी खिलाने के लिए शुरू हुआ पोषण वाटिका मिशन भी लापरवाही के कारण फेल हो चुका है।
आंगनबाड़ी केंद्रों में सप्लाई हो रही पंजीरी बच्चों को बांटने के बजाय पशुपालकों को बेच दी जाती है। इस तरह की कई शिकायतें सामने आ चुकी हैं। इसके अलावा पोषण वाटिका मिशन के तहत गांवों में बनी नर्सरी की भी देखभाल नहीं हो रही। इस बारे में पूछने पर राज्य पोषण मिशन के निदेशक अमिताभ प्रकाश ने बचाया कि पहले की गड़बड़ियों से विभाग ने काफी कुछ सीखा है। इस बार देशी घी के पैकेट्स पर बार-चिप लगाने का विचार किया जा रहा है। जल्द ही इसे अमल में लाया जाएगा। कोई घी के पैकेट्स की चोरी करेगा तो वह पकड़ा जाएगा।
आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीरी मिलती नहीं, अब बांटेंगे दूध-घी
शेरपुर लवल निवासी मीरा के दोनों बच्चे कुपोषित हैं, लेकिन आंगनबाड़ी में पंजीरी नियम के तहत नहीं बांटी जा रही।
एक बार से ज्यादा नहीं मिली पंजीरी
बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग कुपोषित बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषाहार योजना चला रहा है। इसके तहत 3 से 6 साल के बच्चों को रोज मॉर्निंग स्नैक्स के तौर पर 50 ग्राम पंजीरी दी जाती है। वहीं सात माह से तीन साल के बच्चों को महीने में तीन बार एक-एक किलो पंजीरी का पैकेट दिया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि बड़े बच्चों को तो रोज पंजीरी नहीं मिलती, जबकि छोटे बच्चों की माताओं को महीने में बस एक बार एक पैकेट देकर निपटा दिया जाता है।