महराजगंज : मान्यता में खेल, सारे नियम फेल, देश के नौनिहालों के भविष्य के लिए खतरा बन रहे बिन मान्यता स्कूल अभिभावकों जेब ढीली कर रहे, शिक्षा अधिकार अधिनियम की उड़ा रहे धज्जियां
अमर उजाला ब्यूरो, महराजगंज । देश में भले ही शिक्षा अधिकार अधिनियम लागू करते हुए स्कूल में छात्र- शिक्षक अनुपात के साथ ही कक्षा कक्ष आदि का मानक तय कर दिया गया है। लेकिन हकीकत तो यह है कि विभाग की मिली भगत के चलते मान्यता देने में इतना गोल माल किया जा रहा है कि इस खेल के आगे सरकार के सारे नियम कानून पंगु नजर आ रहे हैं।इतना ही नहीं जिले से लेकर ब्लाक स्तरीय जिम्मेदारानों का हाल यह है कि उनके इशारों पर जिले भर में बिन मान्यता के चलने वाले दर्जनों विद्यालय जहां अभिभावकों की जेब ढीली कर रहे हैं। वहीं देश के नौनिहालों के भविष्य के लिए खतरा बने हुए है।
जनपद के बेसिक शिक्षा विभाग दिनों दिन चर्चाओं में रहने की आदत सी हो गई है। जिसका नतीजा है कि विभाग के लिए शासन द्वारा जारी नियम कानून मायने नहीं रखते।सरकार ने पूरे देश में शिक्षा अधिकार अधिनियम लागू कर विद्यालयों के हर पहलुओं के लिए मानक तय कर दिया है। जिसके तहत छात्र व शिक्षक के अनुपात के साथ ही मान्यता के लिए कमरों का पक्का निर्माण होना।कमरों की लंबाई व चौड़ाई के साथ ही विद्यालय के नाम जमीन भी होने की बात तय कर दिया गया है। यहां तक कि मान्यता प्राप्त स्कूलों में भीफठ प्रशिक्षित अध्यापक रखा जाना है। आरटीई के सभी मानकों को पूरा करने के बाद ही प्राइवेट स्कूलों को मान्यता दिया जाना है। लेकिन जिले में मानक की बात करे तो वह बेमानी साबित होगा। यहां आलम यह है कि जिले में करीब चार सौ मान्यता प्राप्त प्राइमरी व जूनियर स्कूल है। जिनमें बमुश्किल दश फीसदी स्कूल मानक पर खरे उतर पाएंगे। बाकी की हालत यह है कि उनके लिए बच्चों की शिक्षा कम मायने रखती है।
बल्कि अभिभावकों की जेब ढीली कर अपना जेब भरने का फिक्र ज्यादा है। इतना ही नहीं विभाग की लापरवाही कहें या लोगों की मनमानी। लेकिन जिले के कुल 12 ब्लाकों में चलने वाले बिन मान्यता वाले दर्जनों स्कूल देश के भविष्य माने जाने वाले नौनिहलों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि इस बावत जब बीएसए जावेद आलम आजमी से जब जिले के मान्यता प्राप्त स्कूलों की जानकारी मांगी गई तो वह अपना पल्ला झाड़ते कार्यालय से सम्पर्क करने की बात कही ।