लखनऊ : एडेड कॉलेजों में शिक्षकों के चयन पर फिर ग्रहण, वर्षो से बाधित चयन प्रक्रिया के एक बार लटकने के भरपूर आसार
लखनऊ : प्राचार्य के पद पर चयन विवादित होने के बावजूद दो शिक्षकों को उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का सदस्य बनाना राज्य सरकार को अब भारी पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के इन दो सदस्यों की सदस्यता खतरे में पड़ने से सरकार की तो किरकिरी हुई ही, अशासकीय सहायताप्राप्त (एडेड) कॉलेजों के लिए शिक्षकों और प्राचार्यो के चयन पर एक बार फिर ग्रहण लगता दिख रहा है। शीर्ष अदालत के फैसले से जहां हाल ही में नियुक्त आयोग के दो सदस्यों की सदस्यता समाप्त होने के आसार हैं, वहीं सदस्य के तौर पर चयनित एक अन्य व्यक्ति का मामला पहले से खटाई में है।
उच्चतर शिक्षा आयोग में अध्यक्ष के अलावा सदस्यों के छह पद सृजित हैं। पिछले महीने तक आयोग में अध्यक्ष के अलावा सिर्फ एक सदस्य तैनात थे। राज्य सरकार ने पिछले महीने आयोग में सदस्यों के रिक्त पदों के लिए तीन शिक्षकों का चयन किया था। इनमें से कासगंज के गंज डुंडवारा कॉलेज के प्राचार्य डॉ.योगेंद्र कुमार द्विवेदी और मैनपुरी के नेशनल पीजी कॉलेज, भोगांव के प्राचार्य डॉ.अजब सिंह यादव को आयोग का सदस्य नियुक्त करने की अधिसूचना जारी कर दी गई थी। वहीं सदस्य के तौर पर चयनित राजधानी के डॉ.शकुंतला मिश्र पुनर्वास विश्वविद्यालय में कॉमर्स के प्रोफेसर डॉ.नागेंद्र यादव के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत के कारण विश्वविद्यालय से उनके नाम की क्लियरेंस नहीं मिल पायी है। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के विज्ञापन संख्या-39 के आधार पर वर्ष 2006-07 में हुए साक्षात्कार के माध्यम से हुए प्राचार्यो के चयन को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने रद कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने चयनित सभी 150 प्राचार्यों को उनके मूल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर वापस भेजने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने प्राचार्य पद पर चयनित जिन 150 शिक्षकों को रिवर्ट करने का आदेश दिया है, उनमें आयोग के सदस्य नियुक्त किये गए डॉ.अजब सिंह यादव और डॉ.योगेंद्र कुमार द्विवेदी भी शामिल हैं। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का सदस्य प्राचार्य ही हो सकता है। अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों नवनियुक्त सदस्यों के प्राचार्य पद पर हुए चयन को ही निरस्त कर दिया है, ऐसे में वे प्राचार्य नहीं रह गए हैं।
इन दोनों सदस्यों की सदस्यता समाप्त करने के लिए उच्च शिक्षा विभाग ने न्याय विभाग से तो राय मांगी है। न्याय विभाग से राय मिलते ही इनकी सदस्यता समाप्त करने का आदेश जारी किया जा सकता है। इन सदस्यों की सदस्यता खत्म हुई तो आयोग में एडेड कॉलेजों के शिक्षकों और प्राचार्यो के चयन के लिए निर्धारित कोरम का फिर अभाव हो जाएगा। ऐसे में वर्षो से बाधित चयन प्रक्रिया के एक बार लटकने के भरपूर आसार हैं।