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इलाहबाद : राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के तहत मलिन बस्ती में जली शिक्षा की अलख

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मलिन बस्ती में जली शिक्षा की अलख

जासं, इलाहाबाद : ठेला लगाकर अपने परिवार का गुजारा करने वाले 45 वर्षीय रमेश ने कभी सोचा भी नहीं था कि

जासं, इलाहाबाद : ठेला लगाकर अपने परिवार का गुजारा करने वाले 45 वर्षीय रमेश ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी आठ वर्षीय बिटिया सुधा को नगर के प्रतिष्ठित स्कूल के शिक्षक, घर आकर पढ़ाएंगे। कुछ ऐसी ही खुशी मलिन बस्ती में रहने वाले अन्य अभिभावकों को भी मिल रही है।

जीआइसी के शिक्षकों के दल ने जब मलिन बस्ती में रहने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने की बात कही तो उन्हें सहर्ष सहमति मिल गई। आज जीआइसी के आधा दर्जन शिक्षकों का दल इस बस्ती में बारी- बारी से गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाने जाता है। अभी इस मुहिम से फिलहाल 14 बच्चों को जोड़ा गया है।

इन शिक्षकों के द्वारा ऐसे बच्चों को शिक्षा दी जा रही है जिनके माता पिता दो जून की रोटी के लिए दिनभर घर से बाहर रहते हैं। ये शिक्षक राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के माध्यम से मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों को रोजाना एक घंटा पढ़ाते हैं। कालेज छूटने के बाद शिक्षक जीआइसी के सामने बस्ती में जाकर इन बच्चों को पढ़ाते हैं। मिशन के तहत हो रहे इस नेक कार्य में जीआइसी के प्रधानाचार्य रणवीर सिंह भी जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि बेहद पिछड़े समाज के इन बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। छात्रों को पढ़ाने की मुहिम में कालेज के शिक्षक संत प्रसाद पाण्डेय, प्रभाकर त्रिपाठी, रवि भूषण, मौजूद सिद्दीकी, धमेंद्र सिंह, और श्रीकृष्ण द्विवेदी जुड़े हैं। साक्षरता कार्यक्रम के अंतर्गत चल रहे कार्यक्रम में शिक्षा प्रदान करना इन शिक्षकों की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। इसके लिए शिक्षकों को अतिरिक्त भुगतान नहीं होता है।

शिक्षक प्रभाकर त्रिपाठी का कहना है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके अभिभावकों को प्रेरित करना चुनौती से कम नहीं होता। बच्चों को चिन्हित करना और रोजाना इन्हें पढ़ाना इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। बच्चों को कापी पेंसिल सहित विभिन्न पठन-पाठन सामग्री भी उपलब्ध करा दी जाती है। बताया कि सुधा कुमारी, रोशनी, आसिम, श्यामबाबू, रागिनी, लक्ष्मी, पूनम, चांदनी, राधा, साधना, प्रीति, रोजी, श्याम और सुशीला को एक घंटा रोजाना पढ़ाया जा रहा है। शिक्षक संत प्रसाद पांडेय कहते हैं कि इन बच्चों को बुनियादी शिक्षा देने के बाद इनका दाखिला किसी सरकारी स्कूल में कराकर इन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने की योजना है।

इस सम्बन्ध में बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि गरीबी में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना हमारे लिए कठिन होता है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। लेकिन इन शिक्षकों ने जो प्रयास किया है वह हमारे बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए आशा की किरण के समान है।

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