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बलिया : शैक्षिक सत्र के चार महीने बीतने के बाद भी स्कूलों में छात्र जुगाड़ की किताबों के सहारे ही पठन-पाठन का कर रहे काम,ऐसी कोरी व्यवस्था में क्यों न हो मोहभंग

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बलिया : शैक्षिक सत्र के चार महीने बीतने के बाद भी स्कूलों में छात्र जुगाड़ की किताबों के सहारे ही पठन-पाठन का कर रहे काम,ऐसी कोरी व्यवस्था में क्यों न हो मोहभंग

बलिया : परिषदीय विद्यालयों में शैक्षिक सत्र के शुरू हुए लगभग चार महीने बीत गए पर यहां अभी तक स्कूलों में छात्र जुगाड़ की किताबों के सहारे ही पठन-पाठन का काम कर रहे हैं। जी हां चार महीने बीतने के बाद भी अभी तक एक भी बच्चों को सरकारी किताबें मुहैया नहीं कराई जा सकी हैं। हालात है कि बच्चे चार माह से कक्षाओं में एकाध पुरानी किताबों से ही किसी तरह पढ़ाई का काम कर रहे हैं। सरकारी स्तर पर इन विद्यालयों के नाम पर सालाना अरबों रुपये पानी की तरह से बहाए जा रहे लेकिन यहां पठन-पाठन के नाम पर होनहारों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही करने का काम किया जा रहा है। स्कूलों में बच्चे जाते तो हैं पर वो बस मध्याह्न भोजन व छात्रवृत्ति पाने तक ही सीमित रह गया है। ऐसे में परिषदीय विद्यालय निजी कांवेंट स्कूलों के मुकाबिल कैसे खड़े होंगे इसका अंदाजा खुद भी लगाया जा सकता है। बड़ी बात तो है कि स्कूलों में किताबें नहीं हैं और बच्चों की बकायदा परीक्षा भी संपन्न कराई जा रही है। परिषदीय स्कूलों में प्रति माह मासिक टेस्ट का प्रावधान किया गया है और यह हर माह की 25 तारीख को कराई भी जा रही है। इसके तहत अब तक यहां दो मासिक परीक्षाएं बिना पाठ्य पुस्तकों के ही करा दिए गए लेकिन इसमें बच्चों ने क्या लिखा और किस आधार पर इसे कराया गया यह बताना काफी कठिन है। ऐसे में कहे तो प्राथमिक स्कूलों की साख को मजबूत करने के लिए सरकारी स्तर पर किए जा रहे सारे प्रयास इस तरह की व्यवस्था में धरातल पर मूर्त रूप लेने के पूर्व ही दम तोड़ दे रहे हैं। तमाम तामझाम के बीच परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले ऐसे बच्चों का भविष्य दाव पर ही लगा है।

ऐसी व्यवस्था में क्यों न हो मोहभंग

परिषदीय स्कूलों को आधुनिक बनाने के साथ अंग्रेजी स्कूलों के बराबर खड़ा करने के लिए ढोल तो बहुत पीटे जा रहे पर ऐसी व्यवस्था में अभिभावकों का मोहभंग क्यों न हो। आज छोटे से लेकर बड़े वर्ग तक के लोग कुछ इन्हीं कारणों से अपने पाल्यों को परिषदीय स्कूलों से दूर करते जा रहे हैं। सालाना काफी संख्या में शिक्षकों की भर्ती की जा रही तो मध्याह्न भोजन से लेकर फल व दूध आदि भी वितरित किए जा रहे पर बावजूद इसके छात्रों की संख्या स्कूलों में लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में बिना किताबों के ही पठन-पाठन कैसे दुरुस्त होगी यह खुद से सोचने की जरूरत है।

50 बच्चों में एकाध के पास हैं पुस्तकें

विभाग की स्थिति कहे तो विद्यालयों में कुछ पुरानी किताबों को बंटवा कर पठन-पाठन का काम चला रहा है। इसमें एक कक्षाओं में यदि 50 बच्चे हैं तो उनमें किताबें दो-चार के पास ही है। ऐसे में कक्षा के सभी बच्चे इन कुछ किताबों से ही पठन-पाठन का काम कर रहे हैं। इसको लेकर पिछले जिलाधिकारी ने विभाग को कड़े निर्देश भी दिए थे पर कहीं से कोई सुनवाई नहीं हुई।

जल्द बंट जाएंगी पुस्तकें : बीएसएबेसिक शिक्षाधिकारी डा.राकेश ¨सह ने कहा कि पाठ्य पुस्तकें शासन स्तर से ही नहीं मिली थीं जिससे विलंब हो गया। पुस्तकें जिले में पहुंच गई हैं और जल्द ही इन्हें वितरित करा दिया जाएगा।

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