आगरा : जिन पर बच्चों को शिक्षित कर देश का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी है, वो अपनी जिम्मेदारी छोड़ अधिकारियों के बने 'सारथी'
आगरा: जिन पर बच्चों को शिक्षित कर देश का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी है, वो अपनी जिम्मेदारी छोड़ अधिकारियों के 'सारथी' बने हैं। वेतन भले ही बच्चों को पढ़ाने का मिल रहा है, लेकिन महीनों से स्कूल की शक्ल नहीं देखी, इसकी जगह साहब की गाड़ी चला रहे हैं, वहीं विभाग का चालक कार्यालय में बैठा है।
परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के चलते शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है। बेसिक शिक्षा अधिकारी को शिक्षकों की कमी दिखाई नहीं दे रही। बीएसए ने अपनी गाड़ी चलाने के लिए एक शिक्षक को चालक बना रखा है। विभागीय चालक रनवीर सिंह पिछले एक साल से कार्यालय में बैठे हैं। चालक रनवीर सिंह का कहना है कि 1980 में उनकी चालक के पद पर नियुक्ति हुई थी। पिछले साल तक वो बीएसए ओंकार सिंह की सरकारी गाड़ी चलाते थे। उनके तबादला के बाद नए बीएसए आए, तो उन्होंने सरकारी जीप में बैठना बंद कर दिया। सर्व शिक्षा अभियान की मद से प्राइवेट गाड़ी लगा ली। उसे कोई और चलाता है। रनवीर ने बताया कि अब वो सुबह 10 से लेकर शाम पांच बजे तक कार्यालय में ही बैठे रहते हैं।
बैठे बैठाए दे रहे वेतन
चालक रनवीर ने बताया कि वो कई बार बीएसए से गाड़ी चलाने की बात कह चुके हैं, लेकिन उन्हें कार्यालय में बैठने को कहा जाता है। ऐसे में वो एक कमरे से दूसरे कमरे में बैठे-बैठे टाइम पास कर रहे हैं। चालक को विभाग बैठे बैठाए हर माह 40 हजार रुपये से ज्यादा का वेतन दे रहा है।
खेरागढ़ में शिक्षक है बीएसए का चालक
बीएसए के सारथी बने चालक का नाम चंद्रशेखर है। वो पिछले साल ही शिक्षामित्र से सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित हुए। तैनाती खेरागढ़ ब्लॉक में मिली, लेकिन उन्होंने विद्यालय की शक्ल तक नहीं देखी है।
कई बीईओ के सारथी भी शिक्षक
विभाग मे कई खंड शिक्षाधिकारियों की निजी गाड़ी भी शिक्षक ही चलाते हैं। जब खंड शिक्षाधिकारी बीएसए कार्यालय आते हैं, तो उनके ब्लॉक में तैनात शिक्षक ही उनकी गाड़ी चलाकर लाता है। सूत्रों ने बताया कि शिक्षकों को चालक बनाने के पीछे दूसरा कारण है। ये ही सेटिंग का काम करते हैं।
शिक्षकों के गाड़ी चलाने के मामले की जानकारी नहीं है। मेरी तैनाती से पहले ही चंद्रशेखर गाड़ी चला रहा था।
-धर्मेद्र सक्सेना, बीएसए आगरा।