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प्रतापगढ़ : आंकड़ों की बाजीगरी, सबकी लगा दी हाजिरी, प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 3,61,795 और मिडिल स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 2,37,289 है ।

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प्रतापगढ़ : आंकड़ों की बाजीगरी, सबकी लगा दी हाजिरी, प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 3,61,795 और मिडिल स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 2,37,289 है ।

बेसिक शिक्षा विभाग के कारनामे भी अजीब हैं। विभागीय अधिकारी शासन को मनमानी रिपोर्ट देकर वाहवाही लूटने में लगे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग ने स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को खोजने के लिए हाउस होल्ड सर्वे कराया था। शिक्षकों से कराए गए सर्वे के आधार पर विभाग ने जो रिपोर्ट दी है वो बेहद चौंकाने वाली है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिले में छह से चौदह वर्ष का कोई ऐसा बच्चा नहीं है, जो स्कूल नहीं जाता है। अर्थात शहर और गांव के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। जबकि वास्तविकता इससे कोसों दूर है। शहर के अधिकांश होटल और ढाबों में पढ़ाई-लिखाई की उम्र में बच्चे पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने में परेशान रहते हैं। ग्रामीण इलाके में भी हजारों ऐसे बच्चे हैं जिन्होने अभी तक स्कूल का मुंह नहीं देखा है। ऐसे बेसिक शिक्षा विभाग की यह रिपोर्ट सवालों के घेरे में है।

बेसिक शिक्षा विभाग ने सितंबर माह में घर-घर सर्वे कराकर यह जानने का प्रयास किया था कि कितने बच्चे स्कूल जा रहे हैं और कितने नहीं। विभागीय रिपोर्ट के मुताबिक, छह से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए हुए सर्वे में यह तथ्य उभरकर आया कि जिले के 4036 स्कूलों में 5,99,084 बच्चे पढ़ रहे हैं। इसमें 3,12,616 बालक और 2,86,468 बालिकाएं हैं।

इसमें प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 3,61,795 और मिडिल स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 2,37,289 है। शिक्षकों की इस रिपोर्ट से बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी भी खूब खुश हैं। मगर वास्तविकता इससे परे है। आज भी जिले में हजारों बच्चे हैं जिन्होंने अभी तक स्कूल का मुंह नहीं देखा है। शिक्षकों और अधिकारियों ने अपनी गर्दन बचाने के लिए घर बैठे मनमानी रिपोर्ट तैयार कर ली। सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं जो आज भी पढ़ाई की उम्र में दो जून की रोटी का इंतजाम करने में लगे हैं। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों को यह सब दिखाई नहीं दिया। शहर के अधिकांश होटल और ढाबों पर छोटे बच्चे अपना पेट भरने के लिए मजदूरी कर रहे हैं। मगर इन बच्चों पर न ही विभाग की नजर पड़ती है और न ही शिक्षक देखना चाहते हैं। ग्रामीण इलाकों की दलित बस्तियों और ईंट भट्ठों पर आने वाले मजदूरों के बच्चों को शिक्षा नहीं दी जाती है और न ही उस दिशा में कोई पहल की जाती है।

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