इलाहाबाद : यूपी बोर्ड में थमेगी बदलाव की बयार, परीक्षा व अहम शैक्षिक रिकॉर्ड रखने वाले संस्थान परिसर भर में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगे हैं, सबको छोड़िए, अधिकारी व कर्मचारियों के बीच रोजमर्रा के संवाद के लिए इंटरकॉम तक का नियमित प्रबंध नहीं
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : यूपी बोर्ड में हाईस्कूल व इंटर के परीक्षार्थी ऑनलाइन परीक्षा फार्म भरते हैं। कक्षा 9 व 11 के छात्र-छात्रओं का ऑनलाइन पंजीकरण भी होता है। इस बार बोर्ड की वेबसाइट पर ही परीक्षा केंद्र निर्धारण की भी तैयारी है। यह सुविधाएं भले ही बाहर से दिखाई देती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि महकमे में गिने-चुने ही कंप्यूटर हैं। सारा काम एजेंसी के जरिये कराया जाता है। परीक्षा व अहम शैक्षिक रिकॉर्ड रखने वाले संस्थान परिसर भर में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगे हैं। सबको छोड़िए, अधिकारी व कर्मचारियों के बीच रोजमर्रा के संवाद के लिए इंटरकॉम तक का नियमित प्रबंध नहीं है। माध्यमिक शिक्षा परिषद जैसे महकमे की इस बदहाल दशा का कारण उसे अपेक्षित धन न मिलना है।
सब कुछ शासन के रहमोकरम पर निर्भर है। हालत यह है कि उसे बोर्ड परीक्षा जैसे अहम कार्य के लिए भी हर साल पर्याप्त बजट आवंटित नहीं हो पाता है। यही वजह है कि मूल्यांकन केंद्रों में शिक्षकों का बकाया खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसा भी नहीं है कि संस्थान के अफसरों ने हालात बदलने का जतन नहीं किया। वर्षो बाद पिछले साल पूरे परिसर की रंगाई-पुताई हुई। किसी तरह मुख्य परिसर के कुछ हिस्से में सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए गए हैं और जुगाड़ करके सालों से खराब पड़ी मुख्य सड़क दुरुस्त कराई गई है। ऐसे ही क्षेत्रीय कार्यालय में भी सीसीटीवी कैमरे चुनिंदा जगहों पर लगवाए गए हैं।
यह सारा काम यहां-वहां के बजट से किया गया। अब संस्थान हाईटेक बनाने व सुविधाएं बेहतर करने के लिए परिषद ने खुद धन का प्रबंध किया तो वित्त विभाग ने उसमें अड़ंगा लगा दिया है। इससे जो कार्य शुरू हुए उनका पूरा हो पाना मुश्किल है। इनमें लाखों परीक्षार्थियों (मुख्यालय से लेकर क्षेत्रीय कार्यालयों तक में रखे) के शैक्षिक अभिलेखों का डिजिटाइजेशन, कंप्यूटरीकरण, अभिलेखागार का बेहतर प्रबंधन, इंटरकॉम सुविधा बहाल करना और अन्य भविष्य की योजनाएं शामिल हैं। यह कार्य पूरे कराने के लिए परिषद को अब अलग से रणनीति बनानी होगी।
कॉलेेजों के विकास का भी इंतजाम : माध्यमिक शिक्षा परिषद ने पंजीकरण शुल्क बढ़ाने में सिर्फ अपना ही नहीं सभी कालेजों (राजकीय, अशासकीय एवं वित्त विहीन) के विकास के लिए धन का प्रबंध किया है। यही वजह है कि 50 रुपये में से एक हिस्सा (10 रुपये) संबंधित कॉलेज के प्रधानाचार्य के पास रहेगा, ताकि वह अपने हिसाब से वहां विकास करा सके ।