बच्चों संग गाय-भैंस भी करती हैं पढ़ाई
इलाहाबाद। सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिक स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की जांच के लिए कमेटी गठित की है। यह कमेटी जल्द ही स्कूलों का जायजा लेने के लिए इलाहाबाद आने वाली है। इसी के मद्देनजर अमर उजाला ने शुक्रवार को शहर के प्राथमिक स्कूलों का हाल जाना। ताज्जुब है कि शहर के स्कूल भी अव्यवस्था के शिकार हैं। बुनियादी सुविधाएं गायब हैं। मसलन, पीने के पानी, शौचालय, बिजली, साफ-सफाई आदि। एक प्राथमिक स्कूल में गाय-भैंस बांधी जाती है, जबकि ठीक बगल में बच्चे पढ़ते रहते हैं। कक्षाओं के पास ही कूड़ा जमा है। पेश है इस पर रिपोर्ट :
नाबालिग से लगवाते हैं झाड़ू-पोछा
प्राथमिक विद्यालय ममफोर्डगंज के परिसर में जिले का सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय भी है। इस परिसर में बीएसए सहित कई महत्वपूर्ण अधिकारी बैठते हैं। इस स्कूल में मात्र एक शिक्षक है। हैरानी यह कि स्कूल में एक नाबालिग बच्चा झाड़ू-पोछा लगाता मिला। आदर्श पूर्व माध्यमिक विद्यालय एलनगंज में बिजली की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। कटिया के जरिए बिजली मिलती है। स्कूल का शौचालय भी इस्तेमाल करने लायक नहीं।
कूड़े का अड्डा बन गया स्कूल
प्राथमिक विद्यालय सोहबतियाबाग अक्सर बंद ही मिलेगा। रेलवे और तालाब की जमीन पर बने इस विद्यालय के आसपास कूड़ा डंप होता है। स्कूल परिसर में गाय-भैंस बांधी जाती हैं। शौचालय नहीं है। एक ही कमरा बना है और इसी में खाना भी बनता है। पूर्व माध्यमिक विद्यालय अलोपीबाग में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। बिजली भी नहीं है। शौचालय गंदा एवं खराब स्थिति में है। मिड-डे मील की क्वालिटी ठीक नहीं मिली। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय दारागंज में भी बिजली का कनेक्शन नहीं है। बच्चों की संख्या रजिस्टर में अंकित संख्या से बहुत कम मिली।
चार पैकेट दूध में एक बाल्टी पानी
नार्मल स्कूल बैंक रोड में बच्चों की संख्या बेहद कम रहती है। स्कूल से जुड़े कुछ लोग कहते हैं कि बुधवार को दूध वितरण के दौरान चार पैकेट दूध में एक बाल्टी पानी मिला दिया जाता है। इससे पता चलता है कि मिड-डे मील की क्वालिटी कैसी है।
प्रति शिक्षक 30 से 40 हजार खर्च परिणाम शून्य
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित कमेटी यदि इलाहाबाद शहर के प्राथमिक विद्यालयों की जांच करेगी तो उसे यहां की स्थिति बेहद दयनीय मिलेगी। हालत यह है कि शहर के प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति भी दूर-दराज के गांवों जैसी ही है। प्राथमिक स्कूलों के हर शिक्षक के वेतन पर 30 से 40 हजार खर्च करने के बाद भी परिणाम शून्य है। विभाग की ओर से स्कूल चलो अभियान चलाया जा रहा है मगर कोई अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में भेजना नहीं चाहता।