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मप्र के सरकारी स्कूलों में हिंदी शिक्षक का पद खत्म, अंग्रेजी अनिवार्य ; भोपाल। प्रदेश के 31 हजार सरकारी माध्यमिक शालाओं में पिछले पांच साल से हिन्दी विषय को अन्य विषयों के शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इन स्कूलों में 32 हजार शिक्षक अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के हैं, लेकिन हिन्दी शिक्षक का पद पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इसका खुलासा हाल ही में तब हुआ, जब प्रदेश के कई जिलों के कलेक्टर, सीईओ और डीईओ के पास नए सेटअप के अनुसार शिक्षकों की पदस्थापना करने का आदेश पहुंचा। इसके अनुसार अब 200 से अधिक छात्रों वाले स्कूलों में ही भाषा का शिक्षक होगा लेकिन यहां भाषा का अर्थ सामाजिक विज्ञान से है, जो हिन्दी भी पढ़ाएगा। इस संबंध में मई 2016 में ही सेटअप तैयार कर लिया गया है। इससे भविष्य में हिन्दी तो दूर भाषा का शिक्षक किसी विद्यालय को नहीं मिलेगा क्योंकि अब हर गांव में स्कूल हैं और अधिकतम 100 से 125 विद्यार्थी इनमें एक समय में पढ़ते हैं। यह स्थिति जनवरी 2012 के बाद बनी, जब राज्य शिक्षा केंद्र के पत्र पर स्कूल शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया कि प्राइमरी में दो शिक्षक और माध्यमिक में तीन शिक्षक रहेंगे। इसमें प्राथमिक को छोड़कर माध्यमिक में हिन्दी भाषा के शिक्षक का पद बड़ी चालाकी से खत्म कर दिया गया है। आदेश में लिखा गया कि माध्यमिक शाला में पहला शिक्षक गणित या विज्ञान का होगा, दूसरा भाषा का और तीसरा शिक्षक सामाजिक विज्ञान का होगा लेकिन इसमें भाषा के आगे कोष्ठक में अंग्रेजी लिख दिया गया। यानी अंग्रेजी भाषा का शिक्षक स्कूलों में पदस्थ रहेगा। इसी आदेश में आगे एक और बड़ी गफलत की गई है। अगर बच्चों की संख्या बढ़ती है तो चौथा शिक्षक संस्कृत विषय का पदस्थ किया जाएगा। इसी प्रकार और संख्या बढ़ने पर पांचवां शिक्षक विज्ञान एवं छठवां शिक्षक सामाजिक विज्ञान का होगा। यानी सामाजिक विज्ञान के दो शिक्षक रह सकते हैं, लेकिन हिन्दी भाषा का एक भी शिक्षक पदस्थ नहीं रह सकता। यह समस्या गफलत के कारण हुई या जानबूझकर यह तो शासन ही बता पाएगा।

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मप्र के सरकारी स्कूलों में हिंदी शिक्षक का पद खत्म, अंग्रेजी अनिवार्य

भोपाल। प्रदेश के 31 हजार सरकारी माध्यमिक शालाओं में पिछले पांच साल से हिन्दी विषय को अन्य विषयों के शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इन स्कूलों में 32 हजार शिक्षक अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के हैं, लेकिन हिन्दी शिक्षक का पद पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इसका खुलासा हाल ही में तब हुआ, जब प्रदेश के कई जिलों के कलेक्टर, सीईओ और डीईओ के पास नए सेटअप के अनुसार शिक्षकों की पदस्थापना करने का आदेश पहुंचा। इसके अनुसार अब 200 से अधिक छात्रों वाले स्कूलों में ही भाषा का शिक्षक होगा लेकिन यहां भाषा का अर्थ सामाजिक विज्ञान से है, जो हिन्दी भी पढ़ाएगा।

इस संबंध में मई 2016 में ही सेटअप तैयार कर लिया गया है। इससे भविष्य में हिन्दी तो दूर भाषा का शिक्षक किसी विद्यालय को नहीं मिलेगा क्योंकि अब हर गांव में स्कूल हैं और अधिकतम 100 से 125 विद्यार्थी इनमें एक समय में पढ़ते हैं। यह स्थिति जनवरी 2012 के बाद बनी, जब राज्य शिक्षा केंद्र के पत्र पर स्कूल शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया कि प्राइमरी में दो शिक्षक और माध्यमिक में तीन शिक्षक रहेंगे। इसमें प्राथमिक को छोड़कर माध्यमिक में हिन्दी भाषा के शिक्षक का पद बड़ी चालाकी से खत्म कर दिया गया है।

आदेश में लिखा गया कि माध्यमिक शाला में पहला शिक्षक गणित या विज्ञान का होगा, दूसरा भाषा का और तीसरा शिक्षक सामाजिक विज्ञान का होगा लेकिन इसमें भाषा के आगे कोष्ठक में अंग्रेजी लिख दिया गया। यानी अंग्रेजी भाषा का शिक्षक स्कूलों में पदस्थ रहेगा। इसी आदेश में आगे एक और बड़ी गफलत की गई है। अगर बच्चों की संख्या बढ़ती है तो चौथा शिक्षक संस्कृत विषय का पदस्थ किया जाएगा। इसी प्रकार और संख्या बढ़ने पर पांचवां शिक्षक विज्ञान एवं छठवां शिक्षक सामाजिक विज्ञान का होगा। यानी सामाजिक विज्ञान के दो शिक्षक रह सकते हैं, लेकिन हिन्दी भाषा का एक भी शिक्षक पदस्थ नहीं रह सकता। यह समस्या गफलत के कारण हुई या जानबूझकर यह तो शासन ही बता पाएगा।

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