इलाहाबाद : इसलिए नहीं रद्द किया हाईकोर्ट ने पीसीएस-प्री 2016 का परिणाम
अमर उजाला ब्यूरो, इलाहाबाद । लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश की पीसीएस-प्रारंभिक परीक्षा 2016 का परिणाम रद्द कर नए सिरे से परीक्षा कराने की याची छात्रों की मांग हाईकोर्ट ने यूं ही खारिज नहीं की। कोर्ट ने परिणाम रद्द करने के बजाए उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्णय दिया तो इसकी ठोस वजह है।
सुनील कुमार सिंह और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति मनोज गुप्ता की पीठ ने सुप्रीमकोर्ट द्वारा निर्णीत राजेश कुमार केस का आधार लेेते हुए यह निष्कर्ष भी निकाला कि इस केस में सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के निष्कर्ष को सही ठहराया है। आंसर की गलत होने के कारण उसके आधार पर जांची गईं कॉपियों का परिणाम दूषित होना स्वाभाविक है, मगर सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के इस निर्देश को स्वीकार नहीं किया कि नए सिरे से चयन प्रक्रिया अपनाई जाए। सुप्रीमकोर्ट का मत था कि इस स्थिति में सबसे स्वाभाविक और तार्किक रास्ता यह है कि गलतियों को सुधारा जाए और उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन सही आंसर की के आधार पर किया जाए।
इसी प्रकार का निर्णय सुप्रीमकोर्ट ने विकास प्रताप सिंह केस में दिया है। यहां सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि जो लोग पहले से चयनित हो चुके हैं और कई वर्षों काम कर चुके हैं उनको नौकरी से निकाला न जाए, बल्कि वरिष्ठता सूची में सबसे नीचे कर दिया जाए। इन निष्कर्षों का आधार लेते हुए हाईकोर्ट ने पीसीएस-प्री 2016 के मामले में भी उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया है।