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आगरा : स्कूल ने प्रवेश न दिया, प्रशासन न छीन सका स्कूल की मान्यता, बाल आयोग ने मांगी प्रशासन से आख्या

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आगरा : स्कूल ने प्रवेश न दिया, प्रशासन न छीन सका स्कूल की मान्यता, बाल आयोग ने मांगी प्रशासन से आख्या
   
आगरा : आरटीई (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम कागजों में तो लागू हो गया है। मगर इसे स्थानीय स्तर पर लागू करा पाने में प्रशासन भी अक्षम साबित हो रहा है। ऐसा ही जिले के पांच ज्ञात और न जाने कितने अज्ञात बच्चों के मामले में हुआ है। प्रशासन कागजी कार्रवाई करके स्कूल पर बच्चों का प्रवेश लेने को दबाव बना रहा है। वहीं स्कूल प्रशासन को अनदेखा करके मनमानी कर रहा है। जिलाधिकारी द्वारा करीब एक माह पूर्व स्कूल की मान्यता खत्म करने के आदेश शिक्षा विभाग को देने के बाद भी इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई न हो सकी है। इधर इन सबके बीच बच्चे आज भी स्कूल जाने से वंचित हैं।

अशोक खरे के पुत्र कृष खरे, तपेश अग्रवाल की पुत्री पूर्वी अग्रवाल और देवेंद्र माहेश्वरी की बेटी आराध्या के साथ ही अलका दिवाकर की बेटी आराधना और अलका के ही छह साल के विकलांग बेटे अमन दिवाकर ने रागेंद्र स्वरुप पब्लिक स्कूल में आरटीई के तहत प्रवेश को बेसिक शिक्षा विभाग की मदद से आवेदन किया था। स्कूल ने प्रवेश न लिया तो मामले में प्रशासन से शिकायत की गई। प्रशासन ने भी शुरूआती दिनों में ध्यान न दिया तो मामले में मुख्यमंत्री और बाल आयोग के साथ ही अन्य जगह पर भी शिकायत की गई।

इसके बाद प्रशासन जागा तो स्कूल की मान्यता खत्म करने को अक्टूबर माह में शिक्षा विभाग को निर्देश दिए। इसके साथ ही काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन को पत्र भेजने की तैयारी की। इन सब प्रयासों के बाद भी स्कूल के खिलाफ शिक्षा विभाग कोई कठोर कदम नहीं उठा सका। इधर इतने प्रयास के बाद भी शिक्षा से वंचित बच्चे अभी तक घर बैठे हैं। इस मामले में बच्चों को प्रवेश दिलाने को संघर्ष कर रहे आरटीई एक्टिविस्ट धनवान गुप्ता बच्चों को प्रवेश न मिलने का दोष प्रशासन को देते हैं। उनका कहना है कि प्रशासन की अनदेखी से ही बच्चों का पूरा साल बर्बाद हो रहा है।

बाल आयोग ने मांगी प्रशासन से आख्या

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के पास आरटीई के तहत बच्चों को स्कूल में प्रवेश न देने की शिकायत की गई तो अब बाल संरक्षण आयोग ने इस मामले में प्रशासन को पत्र भेजा है। इस संबंध में 25 नवंबर को पूर्वी अग्रवाल और आठ नवंबर को अमन दिवाकर के शिकायती पत्रों पर जिलाधिकारी से 20 दिन के भीतर आख्या मांगी गई है। अब प्रशासन द्वारा भेजी गई आख्या के आधार पर बाल संरक्षण आयोग क्या कदम उठाता है यह तो वक्त ही बताएगा।

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