लखनऊ : शैक्षिक अधिकरण के आड़े आई संसाधनों की कमी, पहले दो स्तरीय ढांचे का था प्रस्ताव, अब एक स्तर का
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : बेसिक और माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों व शिक्षणोत्तर कर्मचारियों के सेवा संबंधी विवादों के निपटारे के लिए शिक्षा विभाग ने जिस बड़े पैमाने पर राज्य शैक्षिक अधिकरण की परिकल्पना की थी, वित्त विभाग के अड़ंगे के बाद अब वह एकल स्तरीय उप्र शिक्षा सेवा अधिकरण के रूप में सामने आया है। ढांचे में हुए इस बदलाव के चलते शिक्षा सेवा अधिकरण शिक्षा विभाग से जुड़े मुकदमों का कितना तेजी से निपटारा कर पाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा।
बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग हाई कोर्ट में लंबित बीस हजार से ज्यादा मुकदमों से जूझ रहे हैं। हाईकोर्ट में बढ़ते मुकदमों की संख्या से चिंतित प्रदेश सरकार ने ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए राज्य शैक्षिक अधिकरण गठित करने का फैसला किया था। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने उप्र राज्य शैक्षिक अधिकरण विधेयक का प्रारूप तैयार कर लिया था जिसे कैबिनेट से मंजूरी दिलाकर विधानमंडल के मानसून सत्र में पारित कराने का इरादा था। प्रस्तावित विधेयक में राज्य शैक्षिक अधिकरण के तहत प्रत्येक मंडल स्तर पर रिटायर्ड जिला जज की अध्यक्षता में क्षेत्रीय शैक्षिक अधिकरण गठित करने का प्रावधान था। क्षेत्रीय शैक्षिक अधिकरण के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में गठित राज्य शैक्षिक अधिकरण में अपील करने का प्रावधान था। माना जा रहा था कि राज्य शैक्षिक अधिकरण के दो स्तरीय प्रदेशव्यापी ढांचे की वजह से मुकदमों का निपटारा तेजी से होगा।
कैबिनेट की मंजूरी से पहले राज्य शैक्षिक अधिकरण के गठन का प्रस्ताव वित्त विभाग के अनुमोदन के लिए भेजा गया था। वित्त विभाग ने इस पर यह कहते हुए आपत्ति जतायी कि राज्य शैक्षिक अधिकरण के तहत मंडल स्तर पर क्षेत्रीय शैक्षिक अधिकरण के गठन से सरकारी खजाने पर काफी बोझ बढ़ेगा। वित्त विभाग की आपत्ति के बाद माध्यमिक शिक्षा विभाग ने हर मंडल की बजाय पूरे प्रदेश में चार क्षेत्रीय शैक्षिक अधिकरण गठित करने का प्रस्ताव भेजा लेकिन संसाधनों की किल्लत की दुहाई देकर वित्त विभाग इस पर भी सहमत नहीं हुआ। अब प्रदेश में सिर्फ एकल स्तर पर उप्र शिक्षा सेवा अधिकरण गठित करने का फैसला हुआ है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पूर्व में प्रस्तावित ढांचे के तहत मुकदमों की सुनवाई संबंधित मंडल स्तर पर गठित किए जाने वाले क्षेत्रीय अधिकरणों द्वारा होती। उसमें क्षेत्रीय अधिकरण के स्तर पर भी विवाद के निपटारे की गुंजाइश थी लेकिन नई व्यवस्था में सभी मुकदमों के निस्तारण की चुनौती होगी।