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बरेली : सरकारी व्यवस्था फेल, महंगी शिक्षा में खेल

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सरकारी व्यवस्था फेल, महंगी शिक्षा में खेल

जागरण संवाददाता, बरेली : केंद्र व प्रदेश सरकारी शिक्षा पर जोर दे रहे हैं लेकिन बरेली शहर में बेसिक शिक्षा की नींव आजादी के 68 साल बाद भी मजबूत नहीं हो पाई। कारण, संसाधनों का अभाव और सुधार के लिए आई रकम में खेल। यही कारण रहा कि अभिभावक अपने लाडले की शिक्षा के लिए महंगे निजी संस्थानों की ओर अग्रसर हुए।

ये है प्राइमरी शिक्षा का हाल

शहर में प्राइमरी स्कूलों की संख्या 134 है। इनमें 15 हजार से अधिक विद्यार्थी शिक्षा पा रहे हैं। जूनियर स्कूलों की संख्या 26 है। इनमें लगभग तीन हजार बच्चे पंजीकृत हैं। कुल मिलाकर कक्षा आठ तक के सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या 18 हजार है। जर्जर स्कूलों की संख्या भी दो दर्जन है। अब बात निजी स्कूलों की करें तो इनकी संख्या शहर में 550 से अधिक हैं। इन विद्यालयों में डेढ़ लाख से अधिक बच्चे शिक्षा पा रहे हैं। यानी बच्चों की संख्या में इतना बड़ा अंतर है जबकि सरकारी मशीनरी के बाद पावर अधिक है। संसाधन भी कुछ हैं। यदि प्रयास होते तो उन विद्यालयों में निखार आ सकता था। सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर साल 50 करोड़ से अधिक रकम आती है। यदि इसका उपयोग सही हो जाए तो शिक्षा को पंख लग जाते।

माध्यमिक व इंटर कॉलेजों का हाल

शहर में कक्षा नौ व दस की पढ़ाई के लिए चार सरकारी हाईस्कूल हैं। इनमें 12 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं। सरकारी इंटर कॉलेजों की संख्या दो है। एक छात्र तो दूसरा छात्राओं के लिए। इनमें भी चार हजार विद्यार्थी शिक्षा पा रहे हैं। अब सहायता प्राप्त व निजी स्कूल-कॉलेजों की बात करें तो इनकी संख्या 70 से अधिक है। इनमें 35 हजार से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। छात्र संख्या में एक बड़ा अंतर यहां भी देखा जा सकता है जबकि इसके लिए माध्यमिक शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है। जिस पर हर साल 15 करोड़ से अधिक खर्च हो रहे हैं।

कहां से मिले सरकारी डिग्री

उच्च शिक्षा की बात करें तो शहर में महज एक महिला महाविद्यालय सरकारी है। इस अवंतीबाई कॉलेज में लगभग चार हजार छात्राएं शिक्षा पा रही हैं। लड़कों के लिए सरकारी डिग्री कॉलेज नहीं हैं। इसके कारण वह सहायता प्राप्त बरेली कॉलेज में दाखिले को पहुंचते हैं। यहां हर साल 25 हजार छात्रों के दाखिले होते हैं। लेकिन सरकारी कॉलेज होता तो लगभग दस हजार बच्चे उनमें दाखिला पाते। साहू रामस्वरूप व भूड़ महाविद्यालय भी छात्राओं के लिए हैं। बाकी निजी डिग्री कॉलेजों की संख्या बरेली एनसीआर में एक दर्जन से अधिक है। इनमें 30 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं महंगी शिक्षा लेने का विवश हैं। चाहे वह स्नातक डिग्री हों या फिर परास्नातक।

इसलिए नींव नहीं हो रही मजबूत

परिषदीय विद्यालयों के संसाधनों के लिए आ रही रकम का सदुपयोग नहीं हो रहा।

- स्कूलों में फर्नीचर, खेल सामग्री, पुस्तकें आदि का अभाव।

- शिक्षकों के पदों का रिक्त होना। साथ ही गुणवत्तायुक्त शिक्षा न मिलना।

- पेयजल का संकट, शौचालयों की उपलब्धता कम होना है।

- बेसिक व माध्यमिक शिक्षा विभाग का पूरी जिम्मेदारी के साथ काम न करना।

 

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