सम्भल : शिक्षा से दूर कर दिया गांव का अंधियारा, एक साल में गांव के 30 फीसद लोगों को साक्षर बना चुके हैं शाहे आलम, सिखा रहे साफ-सफाई के गुर
गजेंद्र कुमार यादव ’सम्भल : यह उस मुहिउद्दीनपुर गांव की कहानी है जिसकी तस्वीर और तकदीर गांव के ही युवक ने अकेले अपने दम पर महज एक साल में बदल दी। निरक्षरता का बोझ ढो रहे लोगों को इल्म की रोशनी में लाने का अनअथक प्रयास रंग लाया और तीस फीसदी लोगों को साक्षर बना दिया।
पवांसा विकास खंड का 1350 लोगों की आबादी वाला मुहिउद्दीनपुर गांव शिक्षा के क्षेत्र में बेहद पिछड़ा था। एक भी व्यक्ति न तो किसी सरकारी नौकरी में है और न ही निजी क्षेत्र की नौकरी में। सभी लोग खेती-किसानी और मजदूरी कर गुजारा करते हैं। बच्चे भी स्कूल जाने की बजाय मां-बाप के काम में ही हाथ बंटाते थे। गांव में साक्षरता का आंकड़ा महज तीन प्रतिशत ही था और वह भी शुरुआती शिक्षा का। गांव के ऐसे हालात शाहे आलम को कचोटते थे।
आखिरकार तस्वीर बदलने की एक दिन ठान ही ली और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। शिक्षा के अंधियारे को दूर करने के लिए दीपक जला ही दिया। करीब 23 साल के शाहे आलम खुद हंिदूू कालेज से बीकॉम कर रहे हैं। अपनी पढ़ाई से समय निकालकर वह शाम को निरक्षर लोगों के लिए कक्षा लगाते हैं। साथ ही सुबह के वक्त बच्चों को पढ़ाते हैं। आलम ने गांव के प्राथमिक स्कूल से पढ़ाई की है। अब तक वह गांव के 30 प्रतिशत लोगों को साक्षर बना चुके हैं। 43 गरीब बच्चों को निश्शुल्क ट्यूशन भी दे रहे हैं। वे एनसीसी के पांच कैंप कर चुके हैं। इसमें एक आर्मी अटैचमेंट कैंप सिगनल रेजिमेंट बरेली से भी किया है। उत्कृष्ट कार्य के लिए उनको तीन मेडल भी मिल चुके हैं। हंिदूू कालेज में एनसीसी की बटालियन 24 में बतौर अंडर ऑफीसर वे कैडेट्स को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। गांव में शिक्षा का उजियारा फैलाने के पुनीत कार्य में एनसीसी कैडेट विकास कुमार, मोनू कुमार, फिरोज आलम व अली भी सहयोग कर रहे हैं। उनकी टीम एक साल से गांव, शहरों, स्कूल, कालेजों में पहुंचकर शिक्षा, स्वच्छता, योगाभ्यास, खेलकूद की अलख जगा रही है। शिक्षा के साथ ही वे बच्चों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ते हुए एनसीसी से जुड़ने के लिए भी प्रेरित करते हैं।