इलाहाबाद : यूपी की भर्ती परीक्षाओं में धांधली एवं भ्रष्टाचार के जरिये चयन आम बात हो गई, अभ्यर्थियों की योग्यता विशेषज्ञों पर भारी
धर्मेश अवस्थी, इलाहाबाद । यूपी की भर्ती परीक्षाओं में धांधली एवं भ्रष्टाचार के जरिये चयन आम बात हो गई है। ठीक इसी तरह सवालों का गलत जवाब भी भर्ती परीक्षाओं का हिस्सा बन गया है। हर महकमे में विशेषज्ञों की टीम से प्रश्नपत्र एवं उसकी उत्तरमाला तैयार कराया जाता है लेकिन, अहम परीक्षाओं में भी गलत जवाब के प्रकरण लगातार सामने आ रहे हैं। खास यह कि पदों के दावेदार ही सवालों का सही जवाब भी सुझा रहे हैं। सख्त निर्देशों के बाद भी इसमें रत्तीभर भी सुधार नहीं हुआ है।
सूबे की भर्ती संस्थाओं में उप्र लोकसेवा आयोग की अलग अहमियत है, यह पीसीएस समेत कई प्रकार के अधिकारियों एवं शिक्षकों आदि का चयन करता है। उसकी पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नों के उत्तर पर सवाल खड़े हो चुके हैं। आयोग ने पीसीएस-जे 2013 में 14 प्रश्नों के उत्तर बदले थे। ऐसे ही पीसीएस 2015 में नौ प्रश्न बदलने का प्रकरण कोर्ट तक पहुंचा है। वहीं अन्य कई परीक्षाओं में सवालों का गलत जवाब को लेकर आयोग की किरकिरी हो चुकी है। उधर, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में भी टीजीटी 2013 शारीरिक शिक्षा के सवालों का जवाब ठीक करने के लिए उत्तरमाला का कई बार संशोधन हुआ लेकिन, युवाओं की आपत्तियों के अनुरूप वह दुरुस्त नहीं हो पाए हैं। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और परीक्षा नियामक प्राधिकारी समेत अन्य महकमों का भी ऐसा ही हाल है।
विशेषज्ञ सूची तीन साल में बदले : कई परीक्षाओं के गलत उत्तर विकल्प को लेकर याचिकाएं हाईकोर्ट में आ चुकी हैं जिससे उप्र लोकसेवा आयोग के विशेषज्ञों की योग्यता पर सवाल उठे। अब फुलप्रूफ परीक्षा आयोजित करने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतने की नसीहत दी है। कोर्ट ने कहा है कि आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 315 के तहत किया गया है। लोग कड़ी मेहनत कर परीक्षा में बैठते हैं। गलत प्रश्नोत्तर की वजह से प्रतियोगियों के भाग्य प्रभावित हो रहे हैं। अभ्यर्थी को एक प्रश्न के लिए 47 सेकेंड मिलते हैं। गलत प्रश्नों की वजह से वे सही प्रश्नोत्तरी तक नहीं पहुंच पाते। परीक्षा नियंत्रक योग्य लोगों के पैनल से प्रश्नों का निर्धारण करे। विशेषज्ञों की यह सूची हर तीन साल पर पुनरीक्षित की जाए। ऐसे उपाय हो जिससे भविष्य में गलतियां न हो।
धर्मेश अवस्थी, इलाहाबाद । यूपी की भर्ती परीक्षाओं में धांधली एवं भ्रष्टाचार के जरिये चयन आम बात हो गई है। ठीक इसी तरह सवालों का गलत जवाब भी भर्ती परीक्षाओं का हिस्सा बन गया है। हर महकमे में विशेषज्ञों की टीम से प्रश्नपत्र एवं उसकी उत्तरमाला तैयार कराया जाता है लेकिन, अहम परीक्षाओं में भी गलत जवाब के प्रकरण लगातार सामने आ रहे हैं। खास यह कि पदों के दावेदार ही सवालों का सही जवाब भी सुझा रहे हैं। सख्त निर्देशों के बाद भी इसमें रत्तीभर भी सुधार नहीं हुआ है।
सूबे की भर्ती संस्थाओं में उप्र लोकसेवा आयोग की अलग अहमियत है, यह पीसीएस समेत कई प्रकार के अधिकारियों एवं शिक्षकों आदि का चयन करता है। उसकी पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नों के उत्तर पर सवाल खड़े हो चुके हैं। आयोग ने पीसीएस-जे 2013 में 14 प्रश्नों के उत्तर बदले थे। ऐसे ही पीसीएस 2015 में नौ प्रश्न बदलने का प्रकरण कोर्ट तक पहुंचा है। वहीं अन्य कई परीक्षाओं में सवालों का गलत जवाब को लेकर आयोग की किरकिरी हो चुकी है। उधर, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में भी टीजीटी 2013 शारीरिक शिक्षा के सवालों का जवाब ठीक करने के लिए उत्तरमाला का कई बार संशोधन हुआ लेकिन, युवाओं की आपत्तियों के अनुरूप वह दुरुस्त नहीं हो पाए हैं। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और परीक्षा नियामक प्राधिकारी समेत अन्य महकमों का भी ऐसा ही हाल है।
विशेषज्ञ सूची तीन साल में बदले : कई परीक्षाओं के गलत उत्तर विकल्प को लेकर याचिकाएं हाईकोर्ट में आ चुकी हैं जिससे उप्र लोकसेवा आयोग के विशेषज्ञों की योग्यता पर सवाल उठे। अब फुलप्रूफ परीक्षा आयोजित करने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतने की नसीहत दी है। कोर्ट ने कहा है कि आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 315 के तहत किया गया है। लोग कड़ी मेहनत कर परीक्षा में बैठते हैं। गलत प्रश्नोत्तर की वजह से प्रतियोगियों के भाग्य प्रभावित हो रहे हैं। अभ्यर्थी को एक प्रश्न के लिए 47 सेकेंड मिलते हैं। गलत प्रश्नों की वजह से वे सही प्रश्नोत्तरी तक नहीं पहुंच पाते। परीक्षा नियंत्रक योग्य लोगों के पैनल से प्रश्नों का निर्धारण करे। विशेषज्ञों की यह सूची हर तीन साल पर पुनरीक्षित की जाए। ऐसे उपाय हो जिससे भविष्य में गलतियां न हो।
उदाहरण एक : पीसीएस 2016 की प्री परीक्षा में गलत उत्तर विकल्पों वाले प्रश्न 25, 66 व 92 को हटाकर तथा प्रश्न 44 में विकल्प बी व सी भरने वाले अभ्यर्थियों को पूरा अंक देते हुए नए सिरे से परिणाम