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सिद्धार्थनगर : सरकारी सेवा से रिटायर हुए करीब आठ वर्ष का अरसा बीत चुका है, परंतु शिक्षा के प्रति इनका जुनून कम नहीं हो रहा, शिक्षा को ही बना ली जीवन की राह

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सिद्धार्थनगर : सरकारी सेवा से रिटायर हुए करीब आठ वर्ष का अरसा बीत चुका है, परंतु शिक्षा के प्रति इनका जुनून कम नहीं हो रहा, शिक्षा को ही बना ली जीवन की राह

मोहम्मद मेंहदी ’ डुमरियागंज, सिद्धार्थनगर । सरकारी सेवा से रिटायर हुए करीब आठ वर्ष का अरसा बीत चुका है, परंतु शिक्षा के प्रति इनका जुनून कम नहीं हो रहा है। ब्लाक से लेकर जिला व प्रदेश ही नहीं, वरन दूसरे राज्यों में भी महत्वपूर्ण प्रशिक्षण के वक्त इनको याद किया जाता है। रुचिपूर्ण शिक्षा के लिए ये स्कूली बच्चों समेत शिक्षकों व अधिकारी रैंक के प्रवक्ता को भी प्रशिक्षित करने का काम करते हैं। कला में ऐसा रखते हैं कि कोई भी तस्वीर हो उसे कागज व ब्लैक बोर्ड पर हू-ब-हू उतार देते हैं। इनकी प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि परिषदीय विद्यालयों में सरकारी विषयों की जो किताबें चलती है, उनमें से कुछ विषय इन्हीं के ही होते हैं।

जी हां, हम बात कर रहे हैं, सेवानिवृत्त शिक्षक परवेज अहमद रिजवी की। जो राज्य स्तरीय प्रशिक्षक के रूप में अपनी पहचान कायम कर चुके हैं। डुमरियागंज तहसील के कस्बा हल्लौर निवासी परवेज अहमद ने शुरुआती दौर में मध्य प्रदेश में रेलवे में सेवा प्रारंभ की, मगर उनका लगाव शिक्षा के प्रति बना रहा, यही वजह रही कुछ ही दिनों में उन्होंने नौकरी छोड़ दी, फिर किसान इंटर कालेज सिक्टा व इसके बाद मार्डन हायर सेकेंड्री स्कूल में पढ़ाने लगे। एक जनवरी 1973 में इनका सलेक्शन परिषदीय विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में हुआ। फिर इन्होंने अपने की ऐसी छाप छोड़ी कि हर कोई इनका मुरीद होने लगा। कागज हो या ब्लैक बोर्ड, क्षण भर में किसी की भी ऐसी तस्वीर बना देते हैं, कि देखने वाला हैरान रह जाता है। इस बीच उनका ध्यान प्रशिक्षण की ओर गया, फिर क्या था जगह-जगह ये बतौर ट्रेनर भाग लेने लगे। इस क्षेत्र में शोहरत ऐसी मिली कि यूपी की राजधानी से लेकर प्रदेश में ऐसा कोई जनपद नहीं बचा, जहां ये एक प्रशिक्षक के तौर पर शामिल न हुए हों। यहीं नहीं उत्तराखंड में उत्तर काशी को छोड़ कर वहां के सभी जिलों में ट्रेनर के तौर पर कार्य को बखूबी अंजाम दिया। आंध्र प्रदेश में रिशी शैली में आयोजित प्रशिक्षण में बतौर प्रशिक्षक उन्होंने उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया और इस प्रशिक्षण में उत्तर प्रदेश को कला के क्षेत्र में प्रथम स्थान भी हासिल हुआ। बालिका शिक्षा, रिशी शैली, पद्वति शिक्षा, टीएलएम, थियेटर, कार्य क्षमता, समेकित शिक्षा, ¨बद्रा स्वरूप, जीवन कौशल, रुचि पूर्ण शिक्षा आदि में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

वर्ष 2010 में जूनियर विद्यालय बगडिहवा से सेवानिवृत्त होने के बाद भी शिक्षा के प्रति इनका जुनून यथावत बना हुआ है। आज भी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में कोई महत्वपूर्ण प्रशिक्षण आयोजित होता है तो इन्हें जरूर याद किया जाता है। काबिलियत का अंदाजा इसी से लगा लगाया जा सकता है कि परिषदीय विद्यालयों में कक्षा 1 से 5 तक की किताब में गति विधि आधारित विषय इन्हीं की चल रही है। इसके अलावा कक्षा 3 से 8 तक सरकारी किताब रैनबो अंग्रेजी पुस्तक में चित्रंकन इन्हीं द्वारा किया गया है। आज उम्र के करीब 70 वर्ष पूरी कर रहे हैं, बावजूद इसके महत्वपूर्ण प्रशिक्षण में ये अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में पीछे नहीं रहते हैं, विभाग के अधिकारी तो सीधे इनसे कहते हैं कि आपके बगैर हमारा प्रशिक्षण अधूरा होता है।

🔴 ’कला में रखते महारथ, प्रशिक्षण में निभाते महत्वपूर्ण भूमिका

🔵 ’राज्य स्तरीय प्रशिक्षक के रूप में बना चुके पहचानपरवेज अहमद

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