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सिद्धार्थनगर : बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को राष्ट्रीय शिक्षा अभियान के तहत बीते वर्षों में जिले के 18 स्कूलों को हाईस्कूल का दर्जा देते हुए हुआ उच्चीकृत, पदों का सृजन भी किया गया

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सिद्धार्थनगर : बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को राष्ट्रीय शिक्षा अभियान के तहत बीते वर्षों में जिले के 18 स्कूलों को हाईस्कूल का दर्जा देते हुए हुआ उच्चीकृत, पदों का सृजन भी किया गया

सिद्धार्थनगर : बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को राष्ट्रीय शिक्षा अभियान के तहत बीते वर्षों में जिले के 18 स्कूलों को हाईस्कूल का दर्जा देते हुए उच्चीकृत किया, इसके साथ ही पदों का सृजन भी किया गया। बावजूद एक में भी प्रधानाचार्य का पद नहीं भरा जा सका है। सहायक अध्यापकों का भी पद खाली पड़ा है 95 फीसद स्कूलों का संचालन सम्बद्धता के भरोसे है।1 राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान अन्तर्गत वर्ष 2009-10, 2010-11 और 2011-12 में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को उच्चीकृत का दर्जा देते हुए उसे हाईस्कूल की मान्यता प्रदान की गई। इसके तहत पदों की स्वीकृति भी हुई, पर तैनाती के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हो सकी। इन वर्षों में स्वीकृत 18 स्कूलों में एक भी प्रधानाचार्य नहीं है। सहायक अध्यापकों, लिपिक व चतुर्थ श्रेणी कर्मियों का भी टोटा बना हुआ है। इनका संचालन भगवान भरोसे ही है। अधिकतर में एक-एक शिक्षकों को सम्बद्ध करते हुए प्रधानाचार्यों समेत सहायक शिक्षकों की पूर्ति की जा रही है। उच्चीकृत होने के चार शैक्षिक सत्र बीत जाने के बाद भी स्थायी शिक्षक की तैनाती न होने से उस क्षेत्र के अभिभावकों का दोहरा नुकसान हो रहा है। पहला यह है कि कक्षा आठ की पढ़ाई बेहतर ढंग से संचालित हो रही थी, वह व्यवस्था ध्वस्त हुई ही, आगे की भी पढ़ाई के लिए संसाधनों का घोर अभाव बना रहने के कारण अपने पाल्यों की पढ़ाई चौपट हो रही है। विडबंना ही कहा जाएगा कि 16 जनपदों का प्रतिनिधित्व करने वाले शिक्षक विधायक इसी जनपद के होने के साथ ही प्रदेश सरकार में कई सत्ता पक्ष के विधायक ही नहीं, विधानसभा अध्यक्ष जैसे पदों को सुशोभित करने वाले जनप्रतिनिधियों ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया। ध्यान दिया होता तो हाईस्कूल स्तर की पढ़ाई का दायरा बढ़ता और गैर जनपदों के साथ ही घर बैठने को छात्र-छात्रएं मजबूर नहीं होती। माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष विजय बहादुर सिंह का कहना है कि शैक्षणिक क्षेत्रों में साधन व संसाधनों को बढ़ाने के लिए जनप्रतिनिधियों को बेहतर प्रयास करना चाहिए था, पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही कि जिम्मेदार इस दिशा में कोई ठोस पहल ही नहीं की।सिद्धार्थनगर : बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को राष्ट्रीय शिक्षा अभियान के तहत बीते वर्षों में जिले के 18 स्कूलों को हाईस्कूल का दर्जा देते हुए उच्चीकृत किया, इसके साथ ही पदों का सृजन भी किया गया। बावजूद एक में भी प्रधानाचार्य का पद नहीं भरा जा सका है। सहायक अध्यापकों का भी पद खाली पड़ा है। 95 फीसद स्कूलों का संचालन सम्बद्धता के भरोसे है।1 राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान अन्तर्गत वर्ष 2009-10, 2010-11 और 2011-12 में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को उच्चीकृत का दर्जा देते हुए उसे हाईस्कूल की मान्यता प्रदान की गई। इसके तहत पदों की स्वीकृति भी हुई, पर तैनाती के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हो सकी। इन वर्षों में स्वीकृत 18 स्कूलों में एक भी प्रधानाचार्य नहीं है। सहायक अध्यापकों, लिपिक व चतुर्थ श्रेणी कर्मियों का भी टोटा बना हुआ है। इनका संचालन भगवान भरोसे ही है। अधिकतर में एक-एक शिक्षकों को सम्बद्ध करते हुए प्रधानाचार्यों समेत सहायक शिक्षकों की पूर्ति की जा रही है। उच्चीकृत होने के चार शैक्षिक सत्र बीत जाने के बाद भी स्थायी शिक्षक की तैनाती न होने से उस क्षेत्र के अभिभावकों का दोहरा नुकसान हो रहा है। पहला यह है कि कक्षा आठ की पढ़ाई बेहतर ढंग से संचालित हो रही थी, वह व्यवस्था ध्वस्त हुई ही, आगे की भी पढ़ाई के लिए संसाधनों का घोर अभाव बना रहने के कारण अपने पाल्यों की पढ़ाई चौपट हो रही है। विडबंना ही कहा जाएगा कि 16 जनपदों का प्रतिनिधित्व करने वाले शिक्षक विधायक इसी जनपद के होने के साथ ही प्रदेश सरकार में कई सत्ता पक्ष के विधायक ही नहीं, विधानसभा अध्यक्ष जैसे पदों को सुशोभित करने वाले जनप्रतिनिधियों ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया। ध्यान दिया होता तो हाईस्कूल स्तर की पढ़ाई का दायरा बढ़ता और गैर जनपदों के साथ ही घर बैठने को छात्र-छात्रएं मजबूर नहीं होती। माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष विजय बहादुर सिंह का कहना है कि शैक्षणिक क्षेत्रों में साधन व संसाधनों को बढ़ाने के लिए जनप्रतिनिधियों को बेहतर प्रयास करना चाहिए था, पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही कि जिम्मेदार इस दिशा में कोई ठोस पहल ही नहीं की।

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