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रामपुर : चौपाल से बन गया इंटर कॉलेज, स्कूल न होने से दूसरे गांव या शहर जाकर पढ़ाई करना मजबूरी थी, बालिकाओं की शिक्षा शून्य थी

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रामपुर : चौपाल से बन गया इंटर कॉलेज, स्कूल न होने से दूसरे गांव या शहर जाकर पढ़ाई करना मजबूरी थी, बालिकाओं की शिक्षा शून्य थी

रामपुर : रामपुर जिले के स्वार के खरदिया गांव में बरसों पहले ज्यादातर ग्रामीण अनपढ़ थे। कोई स्कूल न होने से दूसरे गांव या शहर जाकर पढ़ाई करना मजबूरी थी, बालिकाओं की शिक्षा शून्य थी। लेकिन सन 1971 में जब केंद्र सरकार की ओर से प्रौढ़ शिक्षा का कार्यक्रम शुरू हुआ तो उसी दौरान गांव के केशव सरन ने हाईस्कूल पास किया था। उन्हें प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के तहत गांव में पढ़ाने का मौका दिया गया। इससे वह अनौपचारिक शिक्षा से जुड़ गए।

उन्होंने ग्रामीणों में शिक्षा की अलख जगानी शुरू की। साथ ही अपने घर के सामने ही चौपाल पर बच्चों को भी पढ़ाने लगे। कुछ ही महीनों में बच्चों की संख्या 150 पहुंच गई। यह देख केशव ने वर्ष 1975 में चौपाल को स्कूल बना दिया। पहले प्राइमरी और फिर जूनियर हाईस्कूल की मान्यता लेकर पूरी तरह से शिक्षण कार्य में लीन हो गए। अपनी चार एकड़ जमीन स्कूल को दे दी है। अब उनके बेटा और बेटी के अलावा 21 शिक्षक भी इस काम में सहयोग कर रहे हैं। 2009 में स्कूल उच्चीकृत होकर इंटर कॉलेज बन गया। शिक्षा की सुविधा करीब में मिलने से बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा मिला। आसपास के खरदिया, समोदिया, इमरतपुर, मिलक गुलाम खां, शिवपुरी, मोहनपुरा, पैगम्बरपुर, हरनागला, बथुआ खेड़ा आदि गांवों के 1320 छात्र यहां पढ़ाई के लिए आते हैं। इनमें से 670 बालिकाएं हैं। चालू सत्र में भी 450 छात्र हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा में बैठेंगे। कालेज में मामूली फीस ली जाती है, जिससे हर तबके का बच्चा शिक्षा ग्रहण कर सके। 1952 में जन्मे केशव का जज्बा आज भी कम नहीं हुआ है। नियमित रूप से स्कूल में पढ़ाने का क्रम जारी रखे हुए हैं। केशव सरन का कहना है कि अब उनका अगला सपना डिग्री कालेज खोलना है।

रामपुर : रामपुर जिले के स्वार के खरदिया गांव में बरसों पहले ज्यादातर ग्रामीण अनपढ़ थे। कोई स्कूल न होने से दूसरे गांव या शहर जाकर पढ़ाई करना मजबूरी थी, बालिकाओं की शिक्षा शून्य थी। लेकिन सन् 1971 में जब केंद्र सरकार की ओर से प्रौढ़ शिक्षा का कार्यक्रम शुरू हुआ तो उसी दौरान गांव के केशव सरन ने हाईस्कूल पास किया था। उन्हें प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के तहत गांव में पढ़ाने का मौका दिया गया। इससे वह अनौपचारिक शिक्षा से जुड़ गए। उन्होंने ग्रामीणों में शिक्षा की अलख जगानी शुरू की। साथ ही अपने घर के सामने ही चौपाल पर बच्चों को भी पढ़ाने लगे। कुछ ही महीनों में बच्चों की संख्या 150 पहुंच गई। यह देख केशव ने वर्ष 1975 में चौपाल को स्कूल बना दिया। पहले प्राइमरी और फिर जूनियर हाईस्कूल की मान्यता लेकर पूरी तरह से शिक्षण कार्य में लीन हो गए। अपनी चार एकड़ जमीन स्कूल को दे दी है। अब उनके बेटा और बेटी के अलावा 21 शिक्षक भी इस काम में सहयोग कर रहे हैं। 2009 में स्कूल उच्चीकृत होकर इंटर कॉलेज बन गया। शिक्षा की सुविधा करीब में मिलने से बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा मिला।

आसपास के खरदिया, समोदिया, इमरतपुर, मिलक गुलाम खां, शिवपुरी, मोहनपुरा, पैगम्बरपुर, हरनागला, बथुआ खेड़ा आदि गांवों के 1320 छात्र यहां पढ़ाई के लिए आते हैं। इनमें से 670 बालिकाएं हैं। चालू सत्र में भी 450 छात्र हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा में बैठेंगे। कालेज में मामूली फीस ली जाती है, जिससे हर तबके का बच्चा शिक्षा ग्रहण कर सके। 1952 में जन्मे केशव का जज्बा आज भी कम नहीं हुआ है। नियमित रूप से स्कूल में पढ़ाने का क्रम जारी रखे हुए हैं। केशव सरन का कहना है कि अब उनका अगला सपना डिग्री कालेज खोलना है।

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