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लखनऊ : अभी तक छपने भी नहीं गई किताबें -अप्रैल से शुरू हो चुका है सत्र

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लखनऊ : अभी तक छपने भी नहीं गई किताबें -अप्रैल से शुरू हो चुका है सत्र

प्रमुख संवाददाता / राज्य मुख्यालय । नई सरकार में बुनियादी शिक्षा की तस्वीर बदलने की बाते हैं...रोज नए आदेश हो रहे हैं... लेकिन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति और निशुल्क दी जाने वाली किताबों को लेकर अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। प्रदेश सरकार को 2 करोड़ से भी ज्यादा बच्चों को किताबें देनी है।

ये हाल तब है जबकि अप्रैल से नया सत्र शुरू हो चुका है। जब नई सरकार बनी और अधिसूचना खत्म हुई तो सरकारी प्राइमरी स्कूलों में लगभग 16 हजार सहायक अध्यापकों की काउंसिलिंग शुरू हुई थी। आवेदन चुनाव से पहले लिए गए थे। इनमें 12460 सहायक अध्यापक और 4000 उर्दू शिक्षक शामिल थे। भाजपा सरकार बनते ही इन पर रोक लग गई। हालांकि इस बाबत कोई लिखित आदेश नहीं है लेकिन परम्परानुसार नई सरकार बनने पर चालू नियुक्तियों पर रोक लग जाती है। अभी तक इन पर से रोक नहीं हटी है।

वहीं किताबों को लेकर तकनीकी बिड खुल चुकी है लेकिन फाइनेंशियल बिड के खुलने की तारीख लगातार टाली गई। प्रदेश में निशुल्क दी जाने वाली किताबों को छापने के लिए एक से ज्यादा प्रकाशकों की जरूरत पड़ती है। किताबें छापने से लेकर स्कूलों तक पहुंचने में कम से कम तीन महीने का समय लगता है लेकिन आधा अप्रैल बीत जाने के बाद भी इस पर फैसला नहीं हो पाया है। अभी बच्चे पिछले वर्ष की किताबों से पढ़ रहे हैं।

यूनिफार्म और स्कूल बैग पर भी फिलहाल निर्णय नहीं हो पाया है। हालांकि भाजपा सरकार की मुफ्त जूते-मोजे देने की योजना पर भी काम शुरू हो गया है। सरकार हर वर्ष निशुल्क किताबें और दो जोड़ी यूनिफार्म सर्व शिक्षा अभियान के तहत देती है। वहीं पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने स्कूल बैग देने की योजना शुरू की थी। भाजपा सरकार ने जूते-मोजे और स्वेटर दिए जाने का निर्णय लिया है।

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