इलाहाबाद : पूर्व मंत्रियों तक पहुंचेगा भर्तियों का भ्रष्टाचार,.दो अप्रैल 2013 से लेकर अब तक के प्रकरणों की जांच के आसार
शिकंजा
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : आमतौर पर सरकारी महकमों की भर्तियों में तीन चरण (प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा व इंटरव्यू) ही होते हैं। भर्तियों के पांच चरण (प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा, इंटरव्यू, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट) का जुमला प्रतियोगियों की जुबान पर यूं ही नहीं आया, बल्कि उप्र लोकसेवा आयोग पिछले चार वर्षो से जिस र्ढे पर चल रहा है उसमें एक भी भर्ती विवाद के बिना पूरी नहीं हुई है। यह भर्तियां यदि सीबीआइ ने खंगाली तो कई बड़ों को जांच झुलसाएगी। उनमें सपा शासन के पूर्व मंत्री और कई बड़े अफसर भी दायरे में आएंगे।
सपा शासनकाल में लोकसेवा आयोग की भर्तियों में गड़बड़ियों की भरमार रही। प्रतियोगियों ने सवाल उठाए, पर एक भी मामले की जांच नहीं हुई। कोर्ट ने तमाम प्रकरणों को बदलने का आदेश जरूर दिया। यह तय है कि यदि चार साल की भर्तियों की सीबीआइ से जांच हुई तो भ्रष्टाचार व अनियमितता कर मनमाने चयन के अनेक मामले उजागर होंगे। आयोग में पीसीएस, पीसीएस-जे, लोअर सबआर्डिनेट, आरओ-एआरओ जैसी नियुक्तियों में भी गड़बड़ी हुई है। प्रतियोगियों की माने तो आयोग अध्यक्ष अनिल यादव ने दो अप्रैल 2013 को कार्यभार ग्रहण किया था। उसके बाद से लेकर अब तक जो भी भर्तियां हुई हैं उनमें खामियां भरी पड़ी है। मौजूदा अध्यक्ष डा.अनिरुद्ध यादव के कार्यकाल में हुई भर्तियों पर भी अंगुली उठ चुकी है। आरोप है कि भर्तियों में लिखित परीक्षा में कम अंक पाने वालों को इंटरव्यू में अधिक नंबर देकर सफल किया गया। खास तौर से एक खास जाति के अभ्यर्थियों को इंटरव्यू में ज्यादा अंक दिए गए। लिखित में ज्यादा नंबर पाने वाले कई अभ्यर्थी इंटरव्यू में कम अंक मिलने के कारण सफल ही नहीं हो सके।
आयोग ने भर्तियों में गड़बड़ी करने के लिए मनमाने नियमों का सहारा लिया। मसलन त्रिस्तरीय आरक्षण और स्केलिंग, वन टाइम पासवर्ड आदि के नियम लागू हुए।
इन पर शासन के बड़े अफसरों का अनुमोदन मिला। माना जा रहा है कि सीबीआइ जांच होने पर यह अफसर भी कार्रवाई की जद में आएंगे। ऐसे ही आयोग की नियुक्तियों में पूर्व मंत्रियों व अफसरों के परिजन चयनित हुए। पूर्व मंत्रियों के निर्देश पर आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की तैनाती हुई। जांच होने पर यह सब उजागर होना है। प्रतियोगी लंबे समय से सीबीआइ जांच की मांग कर रहे हैं। इसको लेकर कोर्ट में याचिका तक दाखिल हो चुकी है और प्रधानमंत्री तक भर्तियों की जांच कराने की बात कह चुके हैं, लेकिन अब तक जांच का एलान नहीं हो सका है। यह जरूर है कि सूबे में भाजपा सरकार आने के कुछ दिन बाद ही सबसे पहले आयोग की भर्तियों पर रोक लगाई गई और बाद में धीरे-धीरे सारी भर्तियां ठप हो गई हैं। अब सभी की निगाहें सीबीआइ जांच के एलान पर टिकी हैं।
सुहासिनी ने खींचा सबका ध्यान
प्रतियोगी लंबे समय से आयोग की खामियों को लेकर हमलावर रहे हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान रायबरेली की सुहासिनी बाजपेई के प्रकरण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान इस ओर खींचा और उसी के बाद से आयोग का हाल बेहाल है। असल में पीसीएस मुख्य परीक्षा 2015 की अभ्यर्थी सुहासिनी का प्रकरण सामने आने के बाद आयोग पर मेधावियों की कॉपियां बदलने के आरोप और तेज हो गए हैं।