देवरिया : दूर तलक जा रही विद्या की रोशनी, विद्या के मंदिर के सच्चे साधक बने शत्रुघ्न,उपवन के बीच यह विद्यालय, कांवेंट को दे रहा मात
प्रभात कुमार पाठक ’ देवरिया । सदर विकास खंड का पार्वतीपुर-शाहपुर शुक्ल प्राथमिक विद्यालय विभाग के माथे का चंदन बन गया है। वजह है यहां तैनात प्रधानाध्यापक शत्रुघ्न मणि त्रिपाठी हैं। अपने वेतन से उन्होंने छात्रों के लिए कंप्यूटर, सभी कमरों में बेंच, एडवांस लाइब्रेरी, अत्याधुनिक विज्ञान लैब, टीएलएम कक्ष में महापुरुषों की पुस्तकों से स्कूल को सजाया है। विद्यालय औषधीय पौधों से युक्त है। शिक्षा के क्षेत्र में लगातार तीन वर्षो से जिलाधिकारी के हाथों पुरस्कृत हो रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा का हाल जानने इस विद्यालय में अमेरिका की टीम भी आई थी और उनकी प्रशंसा की थी। ये उन शिक्षकों के लिए हैं, जो शिक्षा को सिर्फ नौकरी का हिस्सा मानते हैं। 1वर्ष 2012 में शत्रुघ्न मणि त्रिपाठी की तैनाती जब पार्वतीपुर-शाहपुर शुक्ल प्राथमिक विद्यालय पर हुई तो उन्होंने प्राथमिक विद्यालय के जरिये बेहतर कार्य कर पेश करने का संकल्प लिया, जिसे बाद में उन्होंने पूरा कर दिखाया। अपने शिक्षक पिता से प्रेरणा लेने के बाद उन्होंने वह कर दिखाया है जिसे करने का हर शिक्षक सपना देखता है। अपने वेतन की दस फीसद धनराशि विद्यालय के रख-रखाव बच्चों की बेहतर शिक्षा व संसाधनों पर खर्च करते हैं। सुबह बैंड की धुन पर माइक से छात्र प्रार्थना करते हैं। प्रतिदिन छात्रों को योग की शिक्षा देने के साथ ही अभ्यास भी कराया जाता है। लगातार तीन साल से उन्हें जिलाधिकारी के हाथों बेस्ट टीचर का अवार्ड मिल रहा है। बाहर से देखने के बाद यह विद्यालय एक उपवन की तरह दिखता है। विद्यालय में नीम, बरगद, पाकड़, कटहल, नवरंग, गुड़हल आदि के पौधे विद्यालय की शोभा बढ़ा रहे हैं। चारों तरफ हरियाली के बीच छात्र यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।1काश! सभी स्कूलों में होती ऐसी व्यवस्था: कांवेंट विद्यालयों को मात दे रहे इस विद्यालय ने न सिर्फ आस-पास के लोगों की परिषदीय विद्यालय के प्रति धारणा को बदल दिया है, बल्कि विभागीय अधिकारी भी यह कहते हैं कि काश! सभी स्कूलों में ऐसी व्यवस्था होती। यदि ऐसा होता, तो न सिर्फ सरकार व विभाग को परिषदीय स्कूलों में छात्र संख्या जुटाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती बल्कि अभिभावक भी गर्व से अपने पाल्यों का नामांकन परिषदीय स्कूलों में कराते। शत्रुघ्न मणि त्रिपाठी कहते हैं कि शिक्षकों को पढ़ाने की जिम्मेदारी मिली है। छात्रों को बेहतर बनाने की जवाबदेही से हम बच नहीं सकते हैं। उन्हें संस्कारवान बनाना भी हम शिक्षकों का धर्म है। 1हमारा ही अनुकरण कर छात्र समाज में अपनी पहचान बनाते हैं। इसलिए छात्रों की बेहतरी के लिए जितना भी किया जाए, कम ही है। हम बस थोड़ा सा प्रयास कर रहे हैं।विद्यालय का मुख्यद्वार ’ जागरणपरिसर में योग करते बच्चे ’ जागरणशत्रुघ्न मणि त्रिपाठी, प्रधानाध्यापकऔषधि से घिरा विद्यालय ’ जागरण’>>प्रतिमाह वेतन का दस फीसद हिस्सा विद्यालय व छात्रों पर करते हैं खर्च1’तीन साल से डीएम कर रहे सम्मानित, अमेरिकी टीम भी थपथपा चुकी है पीठ