इलाहाबाद : निर्धारित तिथि के बाद स्वीकार नहीं होगा जाति प्रमाणपत्र
अमर उजाला ब्यूरो, इलाहाबाद । हाईकोर्ट के तीन जजों की पूर्णपीठ ने कहा है कि विज्ञापन में निर्धारित तिथि के बाद अभ्यर्थी द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाणपत्र स्वीकार्य नहीं है। इसे लेने के लिए नियोक्ता को विवश नहीं किया जा सकता है। पूर्णपीठ ने इस मामले में हाईकोर्ट के अरविंद कुमार यादव केस को सही करार दिया है, जिसमें कहा गया है कि विज्ञापन में निर्धारित शर्त को मानने के लिए सभी बाध्य हैं। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा जारी ओबीसी प्रमाणपत्र में भले ही कोई फर्क न हो मगर यदि अभ्यर्थी राज्य सरकार की नौकरी के लिए आवेदन करता है तो उसे राज्य द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करना होगा तभी जाति प्रमाणपत्र का लाभ मिल सकेगा।
मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोसले, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्णपीठ ने गौरव शर्मा सहित दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह निर्णय दिया है। याचिकाओं पर अधिवक्ता विजय गौतम, सीमांत सिंह, हिमांशु पांडेय, मनीषा चतुर्वेदी आदि वकीलों ने पक्ष रखा।
जाति प्रमाणपत्र विज्ञापन में तय अंतिम तिथि तक ही स्वाकार्य होगा या उसके बाद भी जमा किया जा सकता है, इस मुद्दे पर हाईकोर्ट की दो खंडपीठों में मतभिन्नता थी। एक खंडपीठ का कहना था कि तय तिथि के बाद जमा किया प्रमाणपत्र स्वीकार्य नहीं है जबकि दूसरी पीठ का मत था कि तय तिथि के बाद भी इसे स्वीकार किया जा सकता है। दूसरी पीठ का मानना है कि जाति का निर्धारण जन्म से ही हो जाता है इसलिए इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसने प्रमाणपत्र निर्धारित तिथि से पहले या बाद में जमा किया।
दो पीठों में मतभिन्नता को देखते हुए प्रकरण पूर्णपीठ को संदर्भित कर दिया गया। प्रदेश सरकार के पूर्व स्थायी अधिवक्ता रमेश उपाध्याय और स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि विज्ञापन में अंतिम तिथि इसलिए दी जाती है कि आवेदन पत्र जमा होने के बाद उनकी स्क्रीनिंग की जा सके। यदि तय समय के बाद भी प्रमाणपत्र जमा होते रहेंगे तो भर्ती प्रक्रिया कभी पूरी नहीं हो सकेगी। पूर्णपीठ ने कहा कि कोई ओबीसी है इस आधार पर उसे तय तिथि के बाद फार्म जमा करने की छूट नहीं दी जा सकती। याचीगण के अधिवक्ता सुप्रीमकोर्ट के गिजरोया केस के निर्णय पर निर्धारित तिथि के बाद प्रमाणपत्र जमा करने की छूट मांग रहे थे। इसमें सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि जाति प्रमाणपत्र परीक्षा परिणाम आने से पूर्व स्वीकार हो सकता है।
प्रकरण पुलिस विभाग में कंप्यूटर ऑपरेटरों की भर्ती को लेकर सामने आया। कुछ ओबीसी अभ्यर्थियों ने निर्धारित प्रारूप में जाति प्रमाणपत्र नहीं दिया था जिससे उनका अभ्यर्थन निरस्त कर दिया गया।
Dayanand Tripathi