इलाहाबाद : माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र और प्रदेश सरकार के बीच टकराव की जमीन तैयार हो गई, रिजल्ट से बराबर हुआ ‘नजराना’ का हिसाब
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र और प्रदेश सरकार के बीच टकराव की जमीन तैयार हो गई हैं। यह हालात एकाएक नहीं बने हैं, बल्कि ‘नजराना’ (काम कराने से पहले मुहूर्त का पैसा देना) ने इसमें अदा की है। यह भी सही है कि चयन बोर्ड ने इस पर अंकुश लगाने के लिए तमाम कदम उठाए, लेकिन वह कारगर नहीं हो सके। निष्पक्ष चयन कुछ बोर्ड तक ही सीमित रहा, बाकी में सेटिंग-गेटिंग का खूब खेल हुआ। एकाएक रिजल्ट रुकने और फिर अंतिम परिणाम बदल जाने की चर्चा जोर पकड़ने से टकराव की नौबत आ गई।1प्रदेश के अशासकीय माध्यमिक कालेजों के लिए प्रवक्ता, एलटी ग्रेड शिक्षक व प्रधानाचार्य देने का जिम्मा चयन बोर्ड पर है। यहां नियुक्तियों में धांधली होने की शिकायतें आम बात है। पिछले साल से 2013 प्रवक्ता, स्नातक शिक्षकों का चयन शुरू हुआ। यहां के बोर्ड अध्यक्ष हीरालाल गुप्त ने चयन पारदर्शी तरीके से होने की दिशा में तमाम इंतजाम किये। मसलन, परिसर में सीसीटीवी कैमरा, कंप्यूटर के जरिये साक्षात्कार बोर्ड तय करना, अभ्यर्थी को इंटरव्यू से कुछ मिनट पहले कोड देना आदि नियम बनाये गए। कुछ सदस्यों की नियुक्ति भी चयन बोर्ड की साख बेहतर कराने की कराई गई। इसके बाद भी भर्तियों में ‘खेल’ नहीं रुका। अभ्यर्थियों की मानें तो लिखित परीक्षा का परिणाम काफी हद तक दुरुस्त रहा है, जबकि पहले यहां प्रत्यावेदन देकर लिखित परीक्षा की ओएमआर शीट तक में संशोधन करा लिया जाता रहा है। अब यहां नियुक्ति पाने में साक्षात्कार में ‘नजराने’ की परंपरा चल पड़ी है। अभ्यर्थी बताते हैं कि यहां के दो बोर्डो को छोड़कर बाकी में साक्षात्कार उत्तीर्ण आसानी से कराया जा रहा है। 1अभ्यर्थियों ने यह भी बताया कि चयन बोर्ड ‘नजराने’ के मामले में खासा ईमानदार है। यदि किसी का चयन न हुआ तो पेशगी वापस होती है। बीते 22 मार्च को प्रदेश की भाजपा सरकार ने नियुक्ति व परिणाम जारी करने की प्रक्रिया एकाएक रुकवा दी। उस समय टीजीटी 2013 के छह विषयों का रिजल्ट तैयार हो चुका था, लेकिन वह घोषित नहीं हो पाया था। इसमें हंिदूी, सामाजिक विज्ञान, शारीरिक शिक्षा व संस्कृत जैसे विषयों में चयनित होने वालों की संख्या काफी अधिक थी। 1सूत्रों की मानें तो ‘नजराने’ की रस्म अदा हो चुकी थी। उसी समय यह चर्चा भी तेज हुई कि लिफाफे में बंद परिणाम बदला जा सकता है और सरकार भर्तियां रद भी कर सकती है। ऐसे में प्रभावित अभ्यर्थी जी-जान से इसी में जुटे कि किसी तरह से इन छह विषयों का परिणाम घोषित हो जाए। अभ्यर्थी 2011 काप्रवक्ता व स्नातक शिक्षक के परिणाम व 2016 की परीक्षा का लेकर इतना गंभीर नहीं थे, जितना वह छह विषयों को लेकर दौड़ लगा रहे थे। मंत्री, सरकार के बाद कोई रास्ता न मिलने पर कोर्ट की शरण ली गई। वैसे चयन बोर्ड अध्यक्ष से लेकर अफसर तक नियुक्तियों को पारदर्शी बता रहे हैं।’>>मा. शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र में चल रहा सेटिंग-गेटिंग का खेल 1’>>भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के इंतजाम भी कारगर नहीं हो सके