इलाहाबाद : माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में ऐसे अभ्यर्थी चयनित हुए, प्रमाणपत्र जारी होने से पहले दावेदारी
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में ऐसे अभ्यर्थी चयनित हुए हैं, जिनकी अर्हता का प्रमाणपत्र बाद में जारी हुआ और उन्होंने दावेदारी पहले ही कर दी। प्रामाणिक शिकायत पर रिजल्ट में बदलाव हुआ, लेकिन अब फिर उसी अभ्यर्थी को प्रवक्ता बनाने के लिए रिजल्ट में संशोधन करने की तैयारी चल रही है।
चयन बोर्ड ने हंिदूी प्रवक्ता 2013 का अंतिम परिणाम 23 नवंबर 2016 को जारी किया। इसमें दिव्यांग कोटे (दृष्टिहीन) से राधेश्याम प्रजापति का चयन हुआ। कुछ दिन बाद अन्य अभ्यर्थी रविशंकर सिंह ने एमएड का प्रमाणपत्र लगाकर प्रवक्ता का अंतिम परिणाम 28 दिसंबर 2016 को संशोधित करा दिया। चयन सूची से बाहर होने पर राधेश्याम ने रविशंकर के प्रमाणपत्र खंगाले तो उसमें कई गड़बड़ियां मिलीं। राधेश्याम ने बताया कि चयन बोर्ड ने प्रवक्ता का विज्ञापन 28 दिसंबर 2013 को जारी किया था और आवेदन करने की अंतिम तारीख 30 जनवरी 2014 तय थी। उस समय तक रविशंकर के पास एमएड का प्रमाणपत्र नहीं था, क्योंकि फैजाबाद के डा. राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय ने यह प्रमाणपत्र 29 मई 2015 को जारी किया, जो अब भी वेबसाइट पर उपलब्ध है। वहीं रविशंकर ने चयन बोर्ड में यह प्रमाणपत्र 22 जनवरी 2014 को जारी होना दिखाकर लाभ लेने का प्रयास किया।
राधेश्याम ने यह भी बताया कि रविशंकर के पास आंशिक दिव्यांगता का प्रमाणपत्र भी है, जो 2009 में जारी हुआ है। चयन बोर्ड ने इस प्रमाणपत्र को 2016 में स्वीकार कर लिया, जबकि स्पष्ट निर्देश है कि यह प्रमाणपत्र जल्द निर्गत होने चाहिए। इसी तरह राधेश्याम ने रविशंकर के खेल प्रमाणपत्र पर सवाल उठाया है। यह राजफाश होने पर चयन बोर्ड ने 27 मार्च 2017 को अंतिम परिणाम में फिर संशोधन किया। इसमें राधेश्याम का चयन कर लिया गया है और उसे जनता इंटर कालेज कैथा अलीगंज जिला एटा विद्यालय भी आवंटित कर दिया गया है। ताज्जुब यह है कि जालसाजी करने वाले अभ्यर्थी पर चयन बोर्ड ने मौन साध लिया है उसके विरुद्ध एफआइआर दर्ज कराने के बजाय फिर अंतिम परिणाम में संशोधन करने का रास्ता तलाशा जा रहा है। चयन बोर्ड ने अब तक किसी अभ्यर्थी के विरुद्ध इस तरह का ठोस कदम नहीं उठाया है।
दिव्यांग व खेल प्रमाणपत्रों में ‘खेल’
चयन बोर्ड में दिव्यांग और खेल प्रमाणपत्रों के नाम पर बड़े पैमाने पर ‘खेल’ हुआ है। अभ्यर्थी बताते हैं कि अंतिम परिणाम जारी होने के बाद उसमें इन प्रमाणपत्रों को आधार बनाकर संशोधन किया गया। इसमें भी मनमानी हुई है, क्योंकि यदि सामान्य वर्ग का दिव्यांग है तो सामान्य वर्ग के एक अभ्यर्थी को हटाकर उसे मौका दिया गया और यदि किसी दूसरे वर्ग का है तो उसको बाहर किया गया, जबकि दिव्यांग कुल सीटों के सापेक्ष कितने होंगे इसका मानक तय है। उसका अनुपालन नहीं हो रहा है।