लखनऊ : सचिवालय की तबादला नीति पर कर्मचारियों में उबाल
संवाददाता, लखनऊ । सचिवालय की नई तबादला नीति को लेकर आम कर्मचारियों और अधिकारियों में उबाल है। अनुभाग अधिकारियों की पहली तबादला सूची को लेकर भी सचिवालय के माहौल गरम है। सचिवालय प्रशासन विभाग के जिम्मेदार अफसरों पर तबादलों में घूसखोरी के खुले आरोप लग रहे हैं। जबकि यह विभाग सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अधीन आता है।
इन आरोपों के लगने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि तमाम अधिकारी घूम-घूमकर केवल मलाईदार विभागों में ही तैनाती पाते हैं। इन मलाईदारों विभागों में लोक निर्माण, सिंचाई, आबकारी, आवास, गृह, नगर विकास, आरईएस, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, खाद्य एवं रसद विभाग, कर एवं निबंधन, नियुक्ति आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं।
सचिवालय कर्मचारियों में सबसे बड़ा गुस्सा इस बात को लेकर है कि सचिवालय प्रशासन विभाग को तबादला नीति से मुक्त किया गया है। जबकि यह न परामर्शी विभाग है और न विशेषज्ञ विभाग। केवल प्रशासनिक विभाग है। परामर्शी और विशेषज्ञ विभाग केवल दो ही हैं वित्त और कार्मिक। न्याय में भी एलआर ही राय देते हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात है कि कार्मिक तबादला नीति से मुक्त नही है। जबकि डीपीसी से लेकर हर मामले में कार्मिक की राय ली जाती है।
आम सचिवालय कर्मचारियों और अधिकारियों का मानना है कि सचिवालय प्रशासन विभाग ही सबसे बड़े घोटाले का केंद्र है। वहां पर कई लोग 15-20 साल से जमे हैं। वे हटना नहीं चाहते, इसीलिए उन्होंने अपने फायदे के लिए इसे तबादला नीति से कार्यमुक्त कराया है। यही नहीं, मंत्रियों के यहां के होने वाली साजसज्जा, मुख्यमंत्री के यहां होने वाले भोज, 26 जनवरी और 15 अगस्त को होने वाली रोशनी आदि कार्यक्रम और स्टेशनरी की खरीद में भारी धांधली तथा कमीशनखोरी होती है। इसके अलावा सचिवालय में होने वाली कंप्यूटर की खरीद, फर्नीचर, पंखे और पुराने सामान की नीलामी भी सचिवालय प्रशासन करता है। इन सबमें बहुत खेल होता है।