स्कूलों में कैसे सूखेगा बच्चों का पसीना
गर्मी की छुंिट्टयां खत्म होने वाली हैं। सरकारी स्कूल एक जुलाई से खुल जाएंगे। चार दिन बाद मौजमस्ती छोड़ बच्चे स्कूल जाने लगेंगे। वहां हो सकता है कि उन्हें पसीना बहाना पड़े। जिले के 1093 स्कूलों में पंखे तो दूर, बिजली कनेक्शन तक नहीं है। ऐसे में बच्चों का पसीना कैसे सूखेगा? इस सवाल ने अभी तक शिक्षा अधिकारियों को विचलित नहीं किया है। यही वजह रही कि छुंिट्टयों में भी इस पर कोई कवायद नहीं हो सकी।
इन हालातों से सरकार के उन दावों की हकीकत उजागर होती है, जिनमें सीबीएसई की तर्ज पर स्कूलों को चलाने की बात कही जाती रही है। जिले में 2509 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें 1774 प्राइमरी व 735 जूनियर हाईस्कूल हैं। इनमें 2.47 लाख बच्चे पढ़ते हैं। चुनाव के दौरान 1093 स्कूलों को चिह्नित किया गया था, जिनमें बिजली नहीं थी। चुनाव आयोग के डंडे के चलते इनमें अस्थायी बिजली की व्यवस्था की गई। बाद में स्थिति जस की तस हो गई। इनमें बच्चे लिखते कम, पसीना पोंछते ज्यादा नजर आते रहे।
आधे बजट में कैसे मिले हवा : अफसरों का कहना है कि चुनाव के दौरान 6955 रुपये प्रति स्कूल वाह्य संयोजन व 6955 रुपये प्रति स्कूल आंतरिक संयोजन के हिसाब से 13910 रुपये प्रति स्कूल बजट मिला। कुछ साल पहले यही बजट करीब 27 हजार रुपये प्रति स्कूल मिलता था। महंगाई दोगुनी हो गई, बजट आधा कर दिया गया। आंतरिक संयोजन में फिटिंग, पंखे, ट्यूबलाइट आदि खर्च 6955 में कैसे संभव है? वाह्य संयोजन में बिजली के खंभे लगवाकर इतनी राशि में स्कूल तक तार लगवाना मुश्किल है।
300 स्कूलों के कनेक्शन कटने के आसार : बेसिक शिक्षा विभाग पर बिजली विभाग का करीब 10 करोड़ रुपये से ज्यादा बिल बकाया है। विभाग ने करीब 300 स्कूलों की बिजली काटने का फैसला भी कर लिया था। इस राशि में से अभी 3.40 लाख रुपये का ही भुगतान किया गया है, जो 'ऊंट के मुंह में जीरा' है। जल्द भुगतान न होने पर कनेक्शन कटने की कार्रवाई हो सकती है।
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विद्युतीकरण की स्थायी व्यवस्था का काम जारी है, चिह्नांकन भी हो रहा है। कम बजट से काम रुकता है। सभी बच्चों को हवा व बिजली की सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास हैं।
धीरेंद्र कुमार, बीएसए