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कुशीनगर : स्कूल नहीं, यहां के बच्चे हैं माडल

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स्कूल नहीं, यहां के बच्चे हैं माडल

कुशीनगर : परिषदीय माडल स्कूलों को लेकर प्रदेश सरकार गंभीर है। इनके विकास में सरकारी धन को खूब झोंका जा रहा है, लेकिन इससे अलग ऐसे भी विद्यालय हैं, जिसे न तो माडल स्कूल का तमगा मिला है और न ही वह इस दौड़ में शामिल हैं। बावजूद इसके यहां के बच्चे माडल हैं। कांवेंट स्कूलों को चुनौती दे रहे हैं। कुशीनगर जिले में हाटा विकास खंड का बतरौली जूनियर हाईस्कूल मांटेसरी स्कूल को टक्कर देने के लिए तैयार दिख रहा है।

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हुनरबाज हैं नौनिहाल

सुबह योग से पढाई की शुरुआत करने वाले बच्चे कला में भी माहिर हैं। चाहे वह अभिनय हो या संगीत। कागज के सामान बनाने हों या गुड्डा, ये सब कुछ पढाई-लिखाई के दौरान ही सीख रहे हैं। इन्हें आत्मरक्षा के लिए जूडो-कराटे सिखाया जा रहा है। किराए के गुरु जी इन्हें नियमित अभ्यास कराते हैं।

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रंग लाई शिक्षकों की मेहनत

प्रधानाध्यापिका जानकी देवी की अगुवाई में सहायक अध्यापक सुनील ¨सह और राजेंद्र ¨सह ने बच्चों को पूरी तरह से संवारा है। घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल लाने की मेहनत कर रहे इन अध्यापकों को ऐसे ही सफलता नहीं मिली। बच्चों को स्कूल तक सुबह का नाश्ता देना शुरू किया तो मांटेसरी से बच्चों को एक परिषदीय विद्यालय में लाने को कड़ी मेहनत करनी पड़ी है।

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वेतन का 20 फीसद करते हैं खर्च

यहां तैनात तीनों शिक्षकों में इतना सामंजस्य और बच्चों को संवारने की ललक है कि वे अपने वेतन का 20 फीसद बच्चों को संवारने में खर्च करते हैं। उन्हें सुबह का नाश्ता इसी धन से मिलता है। इतना ही नहीं, बच्चों को इस धन से बेहतर क्वालिटी की टाई, बेल्ट और टी-शर्ट देकर कांवेंट स्कूल के मुकाबिल बनाया जाता है। यह बात अलग है कि कभी-कभार बाहरी लोगों से भी कुछ सहयोग जरूर मिल जाता है।

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अब तक नहीं पहुंचे अधिकारी

हालात यह है कि 21 मई से 8 जून तक विद्यालय पर चलने वाले समर कैंप की जानकारी सभी अधिकारियों को है। बावजूद इसके, मानसिक स्तर से मांटेसरी के बच्चों से लड़ने को तैयार इन होनहारों को अब तक किसी उच्चाधिकारी का आशीर्वाद भी नहीं मिला है। न ही माडल स्कूलों को तरजीह देने वाला प्रशासन ही यहां आने की जहमत उठा रहा है। जबकि कभी 28 की संख्या वाला यह विद्यालय अब 160 से अधिक बच्चों को माडल बनाने में जुटा है।

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