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फिरोजाबाद : दूसरे दिन भी बैठे धरने पर, खोया सम्मान लौटाए सरकार

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फिरोजाबाद : दूसरे दिन भी बैठे धरने पर, खोया सम्मान लौटाए सरकार

जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बेरोजगार हुए समायोजित शिक्षकों का धरना दूसरे दिन भी जिला मुख्यालय पर जारी रहा। महिला एवं पुरुषों ने यहां पहुंच कर हुंकार भरी। जमकर नारेबाजी करते हुए कहा उम्र के इस पड़ाव पर जो झटका मिला है, उससे सरकार उबरने में मदद करे।

आदर्श समायोजित शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के तत्वावधान में समायोजित शिक्षक मुख्यालय पर पहुंचे। धरना स्थल पर सुबह से दोपहर बाद तक नारेबाजी गूंजती रही। महिला एवं पुरुषों ने अपनी-अपनी बात रखते हुए कहा कि हमने सालों स्कूलों में मेहनत की। 2200 रुपये मानदेय पर पूरे स्कूल को संभाला। बच्चों को शिक्षा दी। तब तक किसी को कोई दिक्कत नहीं थी। तब तक यह भी नहीं देखा कि हमारी योग्यता कम है, लेकिन अब जब सरकार ने वेतन बढ़ा कर हमें शिक्षक का सम्मान दिया तो हम योग्य नहीं हैं। आखिर 3500 रुपये में पढ़ाएंगे तो उनको कोई दिक्कत नहीं। इस फैसले के बाद हमारे परिवार भुखमरी के कगार पर आ गए हैं। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।

धरने को श्रीओम यादव, आदेश यादव, धर्मेंद्र कुशवाहा, नीरज चौहान एवं नागेंद्र ¨सह आदि ने संबोधित किया। प्रभारी बीएसए केवी ¨सह ने धरना स्थल पर पहुंच कर समझाया कि कोई ऐसा कदम न उठाएं, जिससे कानून व्यवस्था प्रभावित हो। दोपहर बाद शिक्षामित्रों ने एडीएम चंद्रभान ¨सह को ज्ञापन सौंपा। शिक्षक नियमावली में संशोधन कर फिर से शिक्षक का सम्मान लौटाने की मांग की है। धरने में संतोष यादव, प्रवेश यादव, मनोज पचौरी, उमेश यादव, दिलीप यादव, अर्जुन ¨सह, गिरजेश यादव, संदीप राजपूत, आशीष मिश्रा, प्रदीप तिवारी, मु. शमीम, जाकिर अली, रामसेवक, मनोज चौहान, आकाश यादव, कुलदीप, चंद्रभान वर्मा, साहूकार वर्मा, गिरीश यादव, विजयपाल ¨सह, सुधीर यादव, संजय, जितेंद्र ¨सह, अजय, सुनीता कुशवाहा, प्रेमवती यादव, ललिता, ¨रकी वर्मा, सरोज राजपूत एवं वंदना शर्मा उपस्थित थीं।

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बच्चों को गोद में लेकर पहुंची महिलाएं :

आंदोलन के दौरान कई महिलाएं अपने साथ छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर पहुंची। गर्मी से बच्चे परेशान रहे। कोई अपनी चुनरी से इन बच्चों को धूप से बचाती नजर आई तो कोई पेड़ की छांव में बैठकर रोते हुए बच्चों को चुप कराती नजर आई।

'फैसले में कहा है सरकार चाहे तो शिक्षामित्र के रूप में रखे। शिक्षामित्र भी तो पढ़ाते हैं। असल मुद्दा क्या है। 38000 रुपये पढ़ाने के मिलें तो हम अयोग्य हैं तथा 3500 मानदेय लेकर पढ़ाएं तो योग्य। यह कहां का न्याय है?'

-कृष्णपाल ¨सह जादौन

'जब हमने इंटर एवं बीए की तो 60 फीसद नंबर बहुत माने जाते थे। आज परीक्षा प्रणाली बदली है 85 फीसद नंबर आते हैं। हम आखिर ऐसे में कहां से नौकरी में मेरिट का मुकाबला कर पाएंगे।'

-अर्जुन ¨सह

'अल्प मानदेय में भी हमने स्कूलों की शिक्षण व्यवस्था को बनाए रखा। सरकार ने एनसीटीई की गाइड लाइन की तहत प्रशिक्षण भी कराया। इसके बाद भी एक झटके में हटा दिए गए।'

-श्रीओम यादव

'2007 से शिक्षामित्र के रूप में कार्य कर रहे हैं। हमारा तो भविष्य खराब हो गया। अगर पहले ही हटा देते तो कम से कम पढ़ाई कर लेते। कोई और नौकरी ही ढूंढ लेते।'

-प्रियंका

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