ऐसे तो सुधरने से रही शिक्षा की गुणवत्ता
अनिल त्यागी, मोदीनगर
सरकार का प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने का दावा हवा हवाई साबित हो रहा है। नया सत्र शुरू हुए तीन महीने का समय हो चला है, लेकिन अभी तक स्कूलों में बच्चों को किताबें मुहैया नहीं हो सकी हैं। परेशान अभिभावकों ने बच्चों के नाम स्कूलों से कटवाने का मन बनाया है। वहीं, शिक्षकों को बच्चों को स्कूलों में रोकना मुश्किल हो रहा है।
पिछले दो सालों से परिषदीय स्कूलों में पब्लिक स्कूलों की तर्ज पर सत्र अप्रैल से चल रहे हैं। तत्कालीन सपा सरकार में बच्चों को किताबों का वितरण पूरी साल चलता रहा। हालत यह रही कि कक्षा तीन की अंग्रेजी की किताब तो पूरे साल ही बच्चों को नहीं मिल सकी। सूबे में भाजपा सरकार आने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि अब प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की दशा में निश्चित रूप से सुधार आएगा। सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के दावे भी किए थे, लेकिन इस सरकार में भी शिक्षा के क्षेत्र में कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है। हालत यह है कि अप्रैल में सत्र शुरू होने के बाद चौथा महीने बीतने को है, लेकिन बच्चों को अभी तक किताबें नहीं मिल सकी हैं। बच्चे व परिजन रोजाना शिक्षकों से किताबों के बारे में पूछते हैं, लेकिन बच्चों को आजकल-आजकल कहकर टरकाया जा रहा है। रोजाना किताब मिलने का आश्वासन सुनकर अब परिजनों का धैर्य जवाब दे रहा है। इसी के चलते अब परिजनों ने अपने बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों में कराने का मन बनाया है। सारा निवासी सोनू जाटव का कहना है कि बिना किताबों के शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बात बेकार है। दो, तीन दिन में किताब नहीं मिली तो वह अपने तीनों बच्चों का दाखिला निजी स्कूल में कराने को मजबूर होंगे।
अधिकारी की सुनिए
कुछ किताबें आ गई हैं। जिन कक्षाओं की किताबें नहीं आई हैं, उनकी अगले दस दिन में आ जाएंगी। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने पर हमारा पूरा ध्यान है।
-किरन यादव, एबीएसए।
स्कूलों में पढ़ाना मुश्किल हो रहा है। परिजन रोजाना शिक्षकों से आकर किताबों के बारे में पूछते हैं। रोजाना उन्हें आश्वासन ही दे रहे हैं। कई अभिभावक तो रोजाना एक ही बात को सुनकर अभद्रता पर उतारू हो जाते हैं। स्कूलों में बच्चों को रोकना भी मुश्किल हो रहा है।
-डा. अनुज त्यागी, प्रांतीय मंत्री, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ।