इलाहाबाद : यूपी बोर्ड की खास किताबों के प्रकाशन पर बढ़ा संकट, हाईस्कूल स्तर पर सात और इंटर की चार किताबें हुई थीं नियंत्रण मुक्त
इलाहाबाद । माध्यमिक कालेजों में छात्र-छात्रओं को किताबें मुहैया कराने की गुत्थी उलझ गई है। खुले बाजार को किताबें सौंपने की नीति आगे नहीं बढ़ पा रही है। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की खास किताबों का प्रकाशन फंसा है, बाकी किताबें आम प्रकाशक भी मुहैया कराते रहेंगे। शिक्षा विभाग के अफसर व प्रकाशकों के टकराव के कारण किताबें कब मुहैया होंगी यह भी तय नहीं है।
माध्यमिक विद्यालयों के लिए किताबों का प्रबंध माध्यमिक शिक्षा परिषद करता है। इस बार अलग रुख अपनाते हुए बोर्ड ने किताबें मुहैया कराने का जिम्मा खुले बाजार को सौंपा। शैक्षिक सत्र 2017-18 में कक्षा नौ से लेकर 12 तक की किताबों को परिषद के नियंत्रण से मुक्त करने का आदेश भी जारी हो चुका है। इसमें कहा गया कि निजी प्रकाशक पाठ्यक्रम के अनुसार स्वतंत्र रूप से पुस्तकें प्रकाशित कर सकेंगे। देशभर के 14 प्रकाशकों ने बोर्ड से अंडरटेकिंग पाने के लिए आवेदन भी कर दिया था, ताकि किताबों की गुणवत्ता बनी रहे लेकिन, लागत व विक्रय मूल्य को लेकर समस्या खड़ी हुई है। बोर्ड के सभापति व शिक्षा निदेशक अमरनाथ वर्मा मंगलवार को सभी प्रकाशकों को किताबें छापने के लिए सहमत नहीं करा पाये। 12 प्रकाशक सरकार की मौजूदा दरों पर किताबों के प्रकाशन को तैयार नहीं है। अब इलाहाबाद व पटना के एक-एक प्रकाशक बड़ी संख्या में किताबें कम समय में कैसे मुहैया करा सकेंगे यह बड़ा सवाल है। हालांकि प्रशासन को उम्मीद है कि जल्द ही इसका वाजिब हल निकल आएगा।
यह किताबें नियंत्रण से मुक्त : कक्षा नौ व 10 में हंिदूी, अंग्रेजी, संस्कृत, गणित, प्रारंभिक गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान तथा इंटर स्तर में हंिदूी, अंग्रेजी, गणित व अर्थशास्त्र विषय की किताबों को परिषद के नियंत्रण से मुक्त किया गया है।सूबे की नई सरकार ने अप्रैल में ही तय कर दिया था कि माध्यमिक स्कूलों का नया सत्र जुलाई से शुरू होगा। इसके बाद भी किताबों के प्रकाशन को लेकर निर्णय लेने में देरी हुई। बोर्ड का प्रस्ताव लंबे समय तक निदेशक व फिर शासन के यहां पड़ा रहा। जून में प्रकाशन नीति तय हुई, किताब प्रकाशन खुले बाजार में सौंपने भर से अफसरों ने यह मान लिया कि अब सारा हल निकल आया है। 21 जून तक प्रकाशकों के आवेदन मिल गये लेकिन, जून में ही बैठक करके नई दरें बताने के बजाय उसे चार जुलाई के लिए टाल दिया गया। असल में उस समय तक अफसर कालेजों में पढ़ाई की चिंता करने के बजाय मातहतों का तबादला कराने में जुटे रहे। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जुलाई में बैठक करने के बाद आखिर कालेजों को किताबें कैसे और कब तक मिल पाएंगी।